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________________ उद्योतन सूरि (दाक्षिण्यचिन्ह) गद्य-पद्य मिश्रित परम रोचक प्रसादपूर्ण शैली में “कुवलयमाला" नामक प्राकृत कथा साहित्य के अनुपम ग्रन्थ का निर्माण कर चन्द्रकुल हारिलगच्छ के आचार्य उद्योतन सूरि-अपर नाम दाक्षिण्य चिन्ह ने अक्षय कीर्ति अर्जित की। उद्योतन सूरि का जन्म क्षत्रिय राजवंश में वीर निर्वाण की तेरहवीं शताब्दी के अन्तिम चतुर्थ चरण में हुआ था। राजवंश के राजकुमार होने के कारण आपको राजर्षि कहा गया । महाद्वार (मडार) राज्य के राजा उद्योतन के आप पौत्र और राजा बटेश्वर के पुत्र थे। राजकुमार उद्योतन के दक्षिण भाग में स्वस्तिक का एक प्रशस्त चिन्ह जन्म काल से ही था, इसी कारण आपकी राज-परिवार, राज्य और कालान्तर में लोक में भी उद्योतन सूरि के साथ दाक्षिण्य चिन्ह के नाम से भी प्रसिद्धि हुई। बाल्यावस्था में राजकुमार उद्योतन को समीचीन रूप से राजकुमारोचित शिक्षा दी गई। उद्योतन के अन्तर्मन में बाल्यकाल से ही अव्यक्त चिन्तन की एक ऐसी अद्भुत वृत्ति उत्पन्न हो गई थी जो साधारणतः सामान्य बालकों में प्राय: परिलक्षित नहीं होती। चांचल्य, खेल-कूद के प्रति प्रबल आकर्षण, क्षण-क्षण में किसी भी वस्तु के लिये मचल उठना, हठ करना आदि बाल-स्वभाव सुलभ वृत्तियां बालक उद्योतन में अतीव स्वल्प मात्रा में परिलक्षित होती थीं। बालक राजकुमार उद्योतन की प्रारम्भ से ही अध्ययन में गहरी अभिरुचि थी। कुशाग्र बद्धि किशोर उद्योतन ने क्रमश: अध्ययन करते-करते विविध विषयों की विद्याओं में आधिकारिकता प्राप्त की। संयोगवश युग प्रधानाचार्य हारिल सूरि के विद्वान् शिष्य आचार्य राजर्षि देव गुप्त सूरि द्वारा अपने गुरु के नाम पर स्थापित किये गये "हारिल गच्छ"१ के छठे पट्टधर तत्वाचार्य के दर्शन-प्रवचन-श्रवण एवं संसर्ग का राजकुमार उद्योतन को सुअवसर मिला। तत्वाचार्य के उपदेशों से राजकुमार उद्योतन को इस शाश्वत सत्य का बोध हुआ कि इस निस्सार क्षरण भंगुर जगत् में आध्यात्मिक साधना ही सार भूत है। आध्यात्मिक साधना के द्वारा ही जन्म-जरा-मृत्यु, प्राधि-व्याधि आदि असंख्य आदि अन्तविहीन दुःखों के सागर संसार को पार कर उन प्रकार के दु:खों से सर्वदा के लिये छुटकारा प्राप्त किया जा सकता है और इस प्रकार की अमृतत्व प्रदायिनी आध्यात्मिक साधना एकमात्र 'हारिल्ल गच्छ के परिचय के लिये देखिये प्रस्तुत ग्रन्थ के पृष्ठ ४४६-४४७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002073
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2000
Total Pages934
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Parampara
File Size16 MB
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