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________________ ३४३ युगप्रधानाचार्य श्री माढर संभूति जन्म वीर नि. सं. १२६० दीक्षा वीर नि. सं. १२७० सामान्य व्रतपर्याय वीर नि. सं. १२७०-१३०० युगप्रधानाचार्यकाल वीर नि. सं. १३००-१३६० स्वर्ग वीर नि. सं. १३६० सर्वायु १०० वर्ष, ५ मास और ५ दिन 'दुस्समा समण संघ थयं' और उसकी प्रवचूरि के अन्तर्गत 'द्वितीयोदय युग प्रधान यन्त्रम्' के उल्लेखानुसार संभूति को ३३वां और माढर संभूति को ३४वां युगप्रधानाचार्य माना गया है। किन्तु तित्थोगाली पइन्नय में उल्लेख है कि वस्तुतः माढ़र संभूति ३३वें युगप्रधानाचार्य थे और संभति ३४वें । प्रामाणिक एवं प्राचीन ग्रन्थ-'तित्थोगाली पइन्नय' के उल्लेखों को यदि सबल प्रमाण माना जाय तो संभूति का ३४वें युगप्रधान के रूप में परिचय दिया जाना चाहिये। यदि तित्थोगाली पइन्नय में प्रज्जव यति के नाम से अभिहित श्रमणवर को युगप्रधानाचार्य संभूति मान लिया जाय तो वे गढार्थ सहित सम्पूर्ण स्थानांग सूत्र के धारक थे । श्रमरण श्रेष्ठ संभूति के वीर नि. सं. १३५० अथवा १३६० में स्वर्गस्थ होते ही स्थानांग सूत्र के बृहदाकार का ह्रास, प्राकुंचन अथवा व्यवच्छेद हो गया। एतद्विषयक तित्योगाली पइन्नय की गाथा इस प्रकार है : तेरस परिस सतेहि, पण्णास समहिएहि बोच्छेदो। प्रज्जव जतिस्स मरणे, ठाणस्स जिणेहिं निदिछो । (८१६) अर्थात :-वीर नि. सं. १३५० में प्रार्जव यति (संभूत) के दिवंगत होने पर स्थानांग सूत्र का व्यवच्छेद (ह्रास) होना जिनेश्वरों (तीर्थङ्करों) ने बताया है। इतिहास के विद्वानों से इस सम्बन्ध में समुचित शोध. की अपेक्षा है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002073
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2000
Total Pages934
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Parampara
File Size16 MB
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