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[ जैन धर्म का मौलिक इतिहास-भाग ३
नुसार ललितादित्य ने मगध, कलिंग, कर्नाटक, कोंकण, गुजरात, काठियावाड़, द्वारिका, प्रवन्ति आदि की अपनी विजयी सेनाओं के साथ विजय यात्रा की। तदनन्तर उसने कम्बोजों, तिब्बतियों और दरद आदि पहाड़ी आदिवासी जातियों को अपने वश में किया । कल्हण ने ललितादित्य के लिये तीन बार उल्लेख किया है कि उसने मम्मुनि को पराजित किया। अनुमान किया जाता है कि यह कोई अरब आक्रान्ता था। ललितादित्य के शासनकाल में अरबों का भारत की उत्तरी सीमाओं पर मूख्यतः काश्मीर की सीमाओं पर बड़ा दबाव था और कांगड़ा पर तो अरबों ने उस समय एक बार अधिकार भी कर लिया था। ललितादित्य ने उन अरबों को बुरी तरह पराजित कर पंजाब की अरबों से रक्षा की।
कल्हण द्वारा राजतरंगिणी में उल्लिखित ललितादित्य की इन विजयों की पुष्टि करने वाले प्रमाणों के अभाव में सुनिश्चित रूप से कुछ भी नहीं कहा जा सकता।
विशाल भारत के अपने सुविशाल साम्राज्य की आय का पर्याप्तरूपेण अच्छा 'अश ललितादित्य ने काश्मीर की राजधानी को सुन्दरतम बनाने में व्यय किया। ललितादित्य द्वारा काश्मीर की राजधानी में निर्मापित मार्तण्ड मन्दिर उस समय की श्रेष्ठ कलाकृति का प्रतीक है।
___ कल्हण ने राजतरंगिणी में जहां ललितादित्य के शौर्य एवं उसके द्वारा की गई दिग्विजयों की प्रशंसा की, वहां साथ ही ललितादित्य के दो अवगुणों का यथातथ्यरूपेण दिग्दर्शन कराने में इतिहास लेखक के कर्तव्य का भी भलीभांति निर्वहन किया है। कल्हण ने लिखा है कि ललितादित्य के यशस्वी जीवन पर दो काले धब्बे हैं । पहला तो यह कि एक समय मदिरापान कर मदोन्मत्त अवस्था में ललितादित्य ने अपमे मन्त्रियों को आज्ञा दी कि वे तत्काल, काश्मीर राज्य के सुन्दर नगर प्रवरपुर को अग्नि में जलाकर भस्म कर दें। मंत्रियों ने यह जानते हुए भी कि ललितादित्य की आज्ञा का उल्लंघन मृत्यु को निमन्त्रण देने तुल्य है, उसकी आज्ञा को उसके समक्ष शिरोधार्य कर लेने पर भी उस नगर को नहीं जलाया। सुरा का नशा समाप्त होने पर ललितादित्य को अपनी उस मूर्खता पर बड़ा पश्चात्ताप हुआ और जब उसे बताया गया कि वस्तुतः नगर को नहीं जलाया गया है तो वह बड़ा प्रसन्न हुआ।
__ ललितादित्य के जीवन पर लगे एक बड़े कलंक के सम्बन्ध में कल्हण ने लिखा है कि ललितादित्य ने विष्णुपरिहास केशव की मति की साक्षी से गौड़ राज को विश्वास दिलाया था कि उसके साथ सभी भांति सुन्दर व्यवहार किया जायगा। इस विश्वास के साथ उसने गौड़राज को काश्मीर बुलाया किन्तु उसके काश्मीर
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