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वीर सम्वत् १००० से उत्तरवर्ती प्राचार्य ]
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ब्राह्मण को इस बात के लिए प्रलोभन आदि से प्रोत्साहित किया कि वह चन्द्रापीड़ पर अपने मारण अनुष्ठान का प्रयोग करे । उस ब्राह्मण ने चन्द्रापीड़ पर अपने जादू माररण अनुष्ठान (मूठ ) का प्रयोग किया और उससे चन्द्रापीड़ की मृत्यु हो गई । इस प्रकार केवल साढ़े आठ वर्ष के स्वल्प शासनकाल में ही विपुल कीर्ति अर्जित कर न्याय-नीतिपरायण राजा चन्द्रापीड़ अपने सहोदर की दुरभिसंधि के परिणामस्वरूप इस संसार से उठ गया ।
चन्द्रापीड़ के पश्चात् उसका छोटा भाई तारापीड़ काश्मीर का राजा बना । वह बड़ा ही क्रूर और दुष्ट प्रकृति का राजा था। उसके अत्याचारों से प्रजा में त्राहि-त्राहि मच गई। किन्तु चार वर्ष तक ही उसका क्रूरतापूर्ण शासन रहा और उसकी मृत्यु हो गई ।
तारापीड़ की मृत्यु के पश्चात् उसका छोटा भाई ललितादित्य अपर नाम मुक्तापीड़ लगभग ई० सन् ७२४ में काश्मीर के राजसिंहासन पर आसीन हुआ । ललितादित्य का अपर नाम मुक्तापीड़ था। काश्मीर के राजाओं में यह सबसे प्रतापी यशस्वी, रणनीतिनिष्णात और भाग्यवान् राजा हुआ ।
कन्नौज के राजाधिराज यशोवर्मन के परिचय में प्रसंगवशात् इसके जीवनवृत्त पर लगभग पूरी तरह प्रकाश डाला जा चुका है । कन्नौज के, राजसिंहासन पर यशोवर्मन ई० सन् ७०० के आस-पास और काश्मीर के राजसिंहासन पर ललितादित्य ई० सन् ७२४ में बैठा और संभवतः ई० सन् ७३२-३३ के आसपास इन दोनों राजाओं में सौहार्दपूर्ण संपर्क हुआ । अरबों और तिब्बतियों के संभावित आक्रमणों से भारत की रक्षा के लिए इन दोनों राजानों ने मिलकर कुछ समय तक सम्मिलित प्रयास भी किये । किन्तु, जैसा कि पहले बताया जा चुका है इन दोनों की मैत्री स्वल्प काल में ही शत्रुता में परिगत हो गई। दोनों राजाओं में कतिपय वर्षों तक युद्ध भी चलता रहा। युद्ध के पश्चात् प्रस्थाई शान्ति हुई, सन्धि के प्रयास किये गये, सन्धिपत्र भी लिखकर तैयार कर लिया गया, किन्तु "हम बड़े, तुम छोटे" -- इस छोटी सी बात को लेकर सन्धि के प्रयास विफल हुए । घोर युद्ध हुआ और उस युद्ध में यशोवर्मन की पराजय हो जाने के कारण लगभग ३५-३६ वर्ष के अपने शासनकाल में यशोवर्मन ने जो-जो कार्य किये, शत्रुओं का संहार कर एक विशाल सुदृढ़ एवं सशक्त कन्नौज राज्य की स्थापना की थी, यशोवर्मन के उस सुदीर्घकालीन कठोर परिश्रम का फल सहज ही ललितादित्य को मिल गया । यशोवर्मन पर विजय प्राप्त कर लेने के पश्चात् ललितादित्य ने कन्नौज नगर पर और चारों दिशाओं में दूर-दूर तक फैले विशाल कन्नौज राज्य पर अधिकार किया और वह भारत का शक्तिशाली सम्राट्
बना ।
कल्हण के उल्लेखानुसार ललितादित्य जीवन भर विजय अभियानों में ही संलग्न रहा । यशोवर्मन को युद्ध में परास्त करने के पश्चात् कल्हरण के उल्लेखा
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