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________________ ६३४ ] [ जैन धर्म का मौलिक इतिहास - भाग ३ कर दिया गया । जिस स्थान पर मन्दिर का निर्माण किया जा रहा था, वहाँ एक गरीब किसान की झौंपड़ी खड़ी हुई थी । राज्याधिकारियों ने उस किसान को कहा कि वह उस झोंपड़ी में से अपना सामान हटाकर कहीं अन्यत्र झौंपड़ी बना ले । उस किसान ने राज्याधिकारियों से स्पष्ट शब्दों में कहा कि वह किसी भी दशा में उस पड़ी को नहीं छोड़ेगा । अन्त में यह बात महाराज चन्द्रापीड़ तक पहुंची । उन्होंने बड़े ध्यान से अपने राज्याधिकारियों की पूरी बात सुनने के पश्चात् अपने अधिकारियों को ही दोषी ठहराते हुए प्राक्रोशपूर्ण शब्दों में कहा -- "उस किसान की झौंपड़ी तुम उसकी इच्छा के विरुद्ध नहीं ले सकते । निर्माण कार्य को बन्द कर किसी अन्य स्थान पर मन्दिर बनाया जाय । उस किसान के साथ किसी भी प्रकार का अन्याय नहीं किया जाय ।" उस किसान ने भी राजा के समक्ष उपस्थित हो निवेदन किया- "महाराज ! मेरी झोंपड़ी, मेरे जन्म के समय से ही मुझे मेरी जन्मदायिनी मां के समान प्रिय रही है ! वस्तुतः मेरी झोंपड़ी मेरे अच्छे और बुरे दिनों की, सुख-दुःख की संगिनी है | अतः मैं यह नहीं देख सकता कि मेरी आंखों के सम्मुख ही उसे उखाड़ कर फेंक दिया जाय ।" महाराजा चन्द्रापीड़ ने सान्त्वना भरे स्वरों में आश्वस्त किया कि उसकी इच्छा के विपरीत कोई उसकी झौंपड़ी का स्पर्श भी नहीं कर सकेगा । किसान अपने राजा की न्यायप्रियता से बड़ा ही प्रभावित हुआ । उसने राजप्रासाद से अपनी पड़ी की प्रोर लौटते समय लोगों से कहा - "यदि महाराज स्वयं मेरी झोंपड़ी पर कर मन्दिर के निर्माण के लिए मेरी झौंपड़ी की मुझसे मांग करें तो मैं अपनी पड़ी मन्दिर के लिए दे सकता हूं।" किसान के इस कथन की सूचना मिलते ही काश्मीर नरेश्वर चन्द्रापीड़ तत्काल उस किसान की झौंपड़ी पर गया, किसान से उस झौंपड़ी की मांग की । किसान ने सहर्ष अपनी झौंपड़ी राजा को मन्दिर के निर्माण के लिए दे दी । चन्द्रापीड़ ने उस किसान को उसकी झौंपड़ी के बदले विपुल धनराशि प्रदान की । इस प्रकार की दयालुता और न्यायप्रियता के परिणामस्वरूप चन्द्रापीड़ को उसकी प्रजा उसे अन्तर्मन से चाहती थी और उसकी कीर्ति उसके राज्य से बहुत दूर-दूर तक प्रसृत हो गई थी । एक बार चन्द्रापीड़ ने एक ब्राह्मण को उसके इस अपराध से दण्डित किया कि उसने तान्त्रिक मारण विद्या के अनुष्ठान से एक दूसरे ब्राह्मण की हत्या कर दी थी । दण्डित होने के कारण वह जादूगर ब्राह्मण चन्द्रापीड़ पर मन ही मन बड़ा क्रुद्धं हुआ | चन्द्रापीड़ के छोटे भाई तारापीड़ ने इसे अपने हित में उचित अवसर समझकर उस ब्राह्मण की क्रोधाग्नि को और अधिक भड़काते हुए उस तान्त्रिक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002073
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2000
Total Pages934
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Parampara
File Size16 MB
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