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________________ वीर सम्वत् १००० से उत्तरवर्ती प्राचार्य ] [ ६३३ क्रमश: दो राजाओं ने ८० वर्ष तक राज्य किया, जो कि दोनों सहोदर थे। उस यशस्वी गोनन्दवंश का अन्तिम राजा बालादित्य हुमा । गोनन्दवंश के अन्तिम काश्मीरराज बालादित्य के एक पुत्री के अतिरिक्त अन्य कोई सन्तति नहीं हुई । अतः उसने अपनी इकलौती पुत्री का विवाह करकोट नामक नागवंश के दुर्लभवर्द्धन नामक राजकुमार के साथ कर अपने जीवन के संध्याकाल. में ईस्वी सन् ६२७ में अपने जामाता दुर्लभवर्द्धन का काश्मीर के राजसिंहासन पर राज्याभिषेक किया । यही दुर्लभवर्द्धन काश्मीर में करकोट नागवंश-राज्य का संस्थापक अथवा प्रथम राजा हा । हर्षवर्द्धन के परम प्रीतिपात्र चीनी यात्री हनत्सांग ने अपनी काश्मीर यात्रा के संस्मरणों में लिखा है कि महाराज दुर्लभवर्द्धन का काश्मीर राज्य के अतिरिक्त तक्षशिला, पूच, राजोरी, उर्षा (हजारा जिला) और लवण---उत्पादन क्षेत्र सिंहपुर-इन पांच बड़े-बड़े क्षेत्रों पर भी शासन था। दुर्लभवर्द्धन का काश्मीर राज्य पर ३६ वर्ष तक शासन रहा । उसके पश्चात् उसका पुत्र दुर्लभक ५० वर्ष तक काश्मीर राज्य पर शासन करता रहा । इन दोनों पिता पुत्र का शासनकाल शान्तिपूर्ण रहा। इनके शासनकाल में किसी ऐतिहासिक महत्व को घटना के घटित होने का कोई उल्लेख उपलब्ध नहीं होता। महाराजा दुर्लभक के पश्चात् उसका बड़ा पूत्र चन्द्रापीड़ काश्मीर के राजसिंहासन पर बैठा । चन्द्रापीड़ ने अपने राज्य की सीमा के पार अरबों की बढ़ती हई गतिविधियों के समाचार पा चीन-सम्राट के पास अपना दूत भेजकर अरबों के संभावित आक्रमण के विरुद्ध सैनिक सहायता प्रदान करने के लिए निवेदन करवाया। इससे अनुमान किया जाता है कि संभवतः उस समय तक मुहम्मदिन्न कासिम काश्मीर राज्य की सोमाओं के आस-पास पहुंच गया था । चीन से चन्द्रापीड़ को किसी प्रकार की सहायता प्राप्त नहीं हुई और उसने अपनी शक्ति के बल पर ही अरबों के छुटपुट आक्रमणों को विफल कर दिया। उसी समय अरब के खलीफाओं ने अरब सेनाओं के साथ मुहम्मदिन कासिम अथवा अन्य किसी सेनापति को पुनः अरब में बला लिया और अरब पहुंचते ही मुस्लिम सेनापति की मृत्यु हो गई । इससे चन्द्रापीड़ को अपनी सुरक्षात्मक स्थिति सुदृढ़ करने का अवसर मिला। राजा चन्द्रापीड़ बड़ा ही दयालु और न्यायप्रिय शासक था। इसकी न्यायप्रियता और दयालुता की अनेक लोक कथाएं कल्हण के समय तक काश्मीर में प्रचलित रहीं। उनमें से उसकी न्यायप्रियता की एक घटना का कवि कल्हण ने राजतरंगिणी में उल्लेख किया है, जो न केवल शासक वर्ग को ही अपितु सर्वसाधारण को सदा न्याय-पथ पर ही अग्रसर होते रहने की प्रेरणा देती है। काश्मीरी विद्वान इतिहासकार कवि कल्हण के शब्दों में वह घटना इस प्रकार है :--- एक समय महाराजा चन्द्रापीड़ ने एक विशाल एवं भव्य मन्दिर बनाने का अपने मन्त्रियों को आदेश दिया। राजाज्ञानुसार मन्दिर का निर्माण कार्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002073
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2000
Total Pages934
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Parampara
File Size16 MB
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