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[ जैन धर्म का मौलिक इतिहास - भाग ३
काश्मीर कवि कल्हण ने राजतरंगिणी में जो काश्मीर राज्य का प्राचीन इतिहास निबद्ध किया है, उसमें प्रारम्भिक कतिपय शताब्दियों का इतिहास लोक कथाsों भौर किंवदन्तियों के आधार पर ही लिखा गया है, क्योंकि सुदीर्घ प्रतीत की ऐतिहासिक सामग्री कल्हण को उपलब्ध नहीं हो सकी होगी । इतिहासलेखन की कला में निष्णात कल्हरण ने इतिहासलेखन के नियमों का निर्वहन किया है । उस प्राचीन काल की घटनाओं का जो विवरण कल्हण ने लिखा है, उसका प्राधार अधिकांशतः लोक कथाएं, किंवदन्तियां एवं जनश्र ुतियां ही रहीं हैं, इसी कारण कल्हरण द्वारा प्रस्तुत किये गये काश्मीर के इतिहास का प्राचीन काल का पूर्वभाग, जिसमें गोनन्द राजवंश का इतिहास प्रस्तुत किया गया है, वह असंभाव्यता, अनिश्चितता आदि अनेक दोषों से प्रलिप्त होने से विश्वसनीय नहीं माना जा सकता । इससे श्रागे ईसा की सातवीं शताब्दी से कल्हण ने काश्मीर का इतिहास लिखा है, वह कतिपय साधारण घटनाओं को छोड़कर शेष इतिहास वस्तुतः इतिहास के दृष्टिकोण से संतोषप्रद श्रौर पर्याप्त रूपेण विश्वसनीय कहा जा सकता है ।
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अपने प्रश्रयदाता राजवंश को सर्वश्रेष्ठ और राजोचित सभी गुणों से प्रलंकृत बताने का मोह एक प्राश्रित इतिहास लेखक में होना सहज संभव है । उस दशा में इस प्रकार के लेखन में अतिशयोक्तियों का भी बाहुल्य अपेक्षित ही रहता है । इतना सब कुछ होते हुए भी कल्हण ने अपने से लगभग चार सौ साढ़े चार सौ वर्ष पूर्व हुए काश्मीर के महाप्रतापी महाराजा और भारत के सम्राट् ललितादित्य द्वारा विश्वासघात जैसे जघन्य अपराध का ग्राश्रय लेते हुए गौड़ राजा की काश्मीर में बुलाकर हत्या करवा दीगई, उस घटना को ललितादित्य के जीवन पर कलंक का काला धब्बा बताया है । जिस मूर्ति की शपथ ग्रहण करते हुए ललितादित्य ने गौड़राज को सभी भांति की सुरक्षा का विश्वास दिलाते हुए उसे काश्मीर में बुलाया था और ललितादित्य द्वारा विश्वासघात किये जाने के अनन्तर जिन बंगाली युवकों ने बंगाल से काश्मीर तक की उन दिनों अति कष्ट भरी साहसिक यात्रा कर अपने राजा की विश्वासघात पूर्वक हत्या का प्रतिशोध लेने के लिए काश्मीर के राजमन्दिर की मूर्ति के टुकड़े-टुकड़े कर डाले थे, उनकी साहसिकता और स्वामिभक्ति की भी कल्हण ने राजतरंगिरणी में भूरि-भूरि प्रशंसा की है। बड़ी साहसिकता के साथ बिना किसी पक्षपात के एक ऐतिहासिक घटना का यथातथ्य रूपेण आलेखन कर कल्हरण ने इतिहासलेखन के महत्वपूर्ण कर्तव्य का सम्यक् रीति से निर्वहन कर इतिहास जगत् में महती प्रतिष्ठा एवं कीर्ति प्रजित की है ।
कल्हण ने "राजतरंगिणी" में काश्मीर का जो इतिहास लिखा है, उसका सारांश निम्न है
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काश्मीर पर प्राचीन काल में गोनन्द राजवंश का राज्य था । उसमें एक गोनन्दवंशी राजा ने ३०० वर्ष तक राज्य किया और उसके पश्चात् उसके वंशज
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