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वीर सम्वत् १००० से उत्तरवर्ती प्राचार्य ]
[ ६३१ उत्पन्न हुए उस संघर्ष को समाप्त करने के लिए एक संधिपत्र भी लिखकर तैयार किया गया था किन्तु अहमक मन्त्रियों की अदूरदर्शिता के परिणामस्वरूप उस संधिपत्र पर दोनों राजाओं के संधिविग्रहिकों के हस्ताक्षर नहीं हो सके और वह संधि का प्रयास भयंकर युद्ध के रूप में परिणत हो गया।
इस सम्बन्ध में प्रमाणाभाव में निश्चित रूप से तो कुछ भी नहीं कहा जा सकता किन्तु अनुमान किया जाता है कि दोनों राजाओं की सेनाओं के बीच युद्ध छिड़ जाने पर ललितादित्य की ओर से अप्रत्याशित माकस्मिक माक्रमण और अपने राज्य की सीमाओं से दूरस्थ पहाड़ी प्रदेश की प्रतिकूल परिस्थितियों के कारण यशोवर्मन की विजयिनी सेनामों को अपूरणीय भयावह क्षति उठानी पड़ी और यशोवर्मन को अपने राज्य की ओर लौटने के लिए बाध्य होना पड़ा। यशोवर्मन की सेनामों को कन्नौज की ओर लौटते देख काश्मीरी सेनामों का मनोबल बढ़ना सहज स्वाभाविक ही था। इसका परिणाम यह हुमा कि यशोवर्मन की सैन्यशक्ति नष्टप्राय: हो जाने से प्रोर नई कूमूक समय पर नहीं पहुंच पाने से यशोवर्मन की युद्ध में पराजय हुई और ललितादित्य विजयी हुमा । स्वयं कल्हण ने राजतरंगिरणी में लिखा है कि मगध एवं बंगाल के गौड़ महाराजा को ललितादित्य ने विश्वास देकर काश्मीर में अपने घर पर बलाकर उसकी हत्या करवादी और अपने जीवन पर कलंक का अमिट काला टीका लगा लिया । ललितादित्य के विश्वासघात परायण जीवन को देखते हुए यह माशंका करना सहज स्वाभाविक ही है कि उसने कन्नोजराज यशोवर्मन के साथ भी इसी प्रकार का विश्वासघात किया होगा।
यशोवर्मन की पराजय के पश्चात् ललितादित्य की विजयवाहिनी निरन्तर एक के पश्चात् दूसरे प्रदेश में बढ़ती ही रही । प्रतिरोध करने वाली कोई शक्ति थी ही नहीं, इस कारण यशोवर्मन द्वारा लगभग चालीस वर्षों के अपने विजय अभियानों द्वारा उपार्जित विशाल राज्य ललितादित्य को सहज ही प्राप्त हो गया।
इस प्रकार गुप्त साम्राज्य के लगभग ढाई शतक पश्चात् ललितादित्य एक शक्तिशाली साम्राज्य की स्थापना में सफल हुमा । गुप्तों के पश्चात् भारत का यही एकमात्र मन्तिम सम्राट् हुमा।
ईशा की १२ वीं शताब्दी के, काश्मीर राज्य के राजकवि, विद्वान् एवं यशस्वी इतिहासज्ञ कवि कल्हण ने अपने प्रात्यन्तिक ऐतिहासिक महत्व के काव्यग्रन्थ "राजतरंगिणी" में काश्मीर राज्य का कनिष्क से भी पूर्ववर्ती काल से प्रारम्भ कर अपने समय तक का इतिहास लिखा है। राजतरंगिरणी में उल्लिखित काश्मीर के इतिहास को देखकर विद्वान् इतिहासज्ञों की यह मान्यता बन गई है कि भारत के विभिन्न प्राचीन राज्यों में काश्मीर ही एक ऐसा राज्य है, जिसका कि प्राचीन काल से इतिहास एकत्र लिखित रूप में विद्यमान है।
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