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________________ समाट ललितादित्य-मुक्तापीड़ वीर निर्वाण की तेरहवीं शताब्दी में काश्मीर के राजसिंहासन पर कारकोट अथवा नागवंश का राजा ललितादित्य बैठा । यह कन्नौज के महाराजाधिराज यशोवर्मन का समकालीन महाराजा था । जैसा कि पहले बताया जा चुका है यशोवर्मन ई० सन ७०० के लगभग कन्नौज के राजसिंहासन पर बैठा । ऐसा प्रतीत होता है कि यशोवर्मन जब पूर्व पश्चिम और दक्षिण दिशामों में भारत की अन्तिम सीमाओं तक दिग्विजय कर एक विशाल एवं शक्तिशाली कन्नौज राज्य को सुगठित कर चुका था, उस समय ललितादित्य काश्मीर राज्य के राजसिंहासन पर बैठा । जिस समय यशोवर्मन उत्तर दिशा में दिग्विजय करता हा बढ़ा, उस समय अरबों और तिब्बतवासियों ने भारत की उत्तरी सीमामों पर अपनी प्राक्रामक गतिविधियां संभवत: थोड़ी तेज कर दी थीं । परबों और तिब्बतवासियों का भारत की सीमाओं पर दबाव संभवतः ई० सन् ७३०-३१ के आसपास बढ़ने लगा। जैसा कि पहले बताया जा चुका है यशोवर्मन भारत पर पाने वाले विदेशी प्राक्रमण के संकट से चिन्तित हुप्रा और उसने चीन के सम्राट से अपने एक प्रतिनिधिमंडल के माध्यम से ई० सम् ७३१ में प्रार्थना की कि वे भारत पर संभावित विदेशी आक्रमण से भारत की रक्षा में सहायता प्रदान करें। इससे अनुमान किया जाता है कि भारत पर पाने वाले इस भावी संकट के सम्बन्ध में भारत की उत्तरी सीमा पर प्रवस्थित काश्मीर राज्य के महाराजा ललितादित्य से भी विचार विनिमय किया गया। भारत की विदेशी आक्रमणों से रक्षा के पुनीत कार्य को संगठित रूप से किया जाय, इस विचार से यशोवर्मन ने ललितादित्य से मैत्री की । कुछ समय तक ये दोनों राजा सम्मिलित रूप से इस पुनीत कार्य को करते भी रहे थे और उसी समय में किसी क्षेत्र विशेष पर अपना अपना प्राधिपत्य स्थापित करने का प्रयास करते समय ललितादित्य और यशोवर्मन के बीच मनोमालिन्य उत्पन्न हो गया और यह मनमुटाव धीरे-धीरे संघर्ष का रूप धारण करने लगा। ऐसा आभास कल्हण की राजतरंगिणी से होता है । दोनों राजाओं के बीच इस प्रकार की संघर्षात्मक स्थिति संभवतः ई० सन् ७३६ के पश्चात् ही किसी समय उत्पन्न हुई होगी क्योंकि ई० सन् ७३६ में ललितादित्य ने भी अपना प्रतिनिधिमण्डल चीन के सम्राट के पास भेज कर अरबों और तिब्बतियों की भारत की सीमा पर गतिविधियों को रोकने की जो प्रार्थना की थी उसमें उसने चीन के सम्राट से यह भी निवेदन करवाया था कि यशोवर्मन उसका मित्र राजा है। ___यशोवर्मन द्वारा किये गये कार्यों के परिचय में यह बताया जा चुका है कि राजतरंगिणी में कल्हण के उल्लेखानुसार ललितादित्य और यशोवर्मन के बीच Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002073
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2000
Total Pages934
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Parampara
File Size16 MB
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