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राष्ट्रकूट राजा कृष्ण (प्रथम)
वीर नि० सं० १२८० से १३०५ तक राष्ट्रकूट वंशीय राजा कृष्ण प्रथम का विशाल राष्ट्रकूट राज्य पर शासन रहा । यह राष्ट्रकूट वंश के पांचवें राजा इन्द्र का छोटा भाई और छठे राजा दन्तिदुर्ग का पितृव्य था।
कृष्ण प्रथम ने भी अपने २५वर्ष के शासनकाल में राष्ट्रकट राज्य की चारों दिशाओं में सीमावृद्धि की। मन्ने नामक ग्राम के नरहरियप्प के अधिकार में रहे ताम्रपत्रों पर उटंकित लेख (सं० १२३) में इस महाराजा कृष्ण के सम्बन्ध में निम्नलिखित उल्लेख विद्यमान है :
"यश्चालुक्यकुलादनूनविबुधाधाराश्रयाद वारिधेः,
लक्ष्मी मन्दरवत् सलीलमचिरादाकृष्टवान् वल्लभः । अर्थात्-बिना चक्र इस राष्ट्रकूटवंशीय राजा कृष्ण ने बड़े बड़े बुद्धिमानों के प्राधारभूत चालुक्य कूल रूपी समुद्र से उसकी राज्यलक्ष्मी को बलपूर्वक उसी प्रकार खींच लिया जिस प्रकार कि समुद्रमन्थन के समय मन्दराचल की मथनी द्वारा सागर तनया भगवती लक्ष्मी को सागर से निकाल लिया गया था।'
__ कृष्ण ने कोंकण पर अधिकार कर वहां शिलाहारवंशीय राजकुमार को सामन्त के रूप में नियुक्त किया। इसने गंग राज्य पर आक्रमण किया। गंगराज श्रीपुरुष को रणांगण में पराजित कर उसे अपना अधीनस्थ राजा बनाया। कृष्ण ने अपने बड़े पुत्र गोविन्द को एक बड़ी सेना के साथ वेंगी के चालुक्य राजा को वश में करने के लिए भेजा। वेंगी के राजा विजयादित्य प्रथम ने राजकुमार गोविन्द के समक्ष उपस्थित हो बिना किसी संघर्ष के ही राष्ट्रकूट राज्य की अधीनता स्वीकार कर ली। कृष्ण के गोविंद और ध्र व नामक दो पुत्र थे । ध्रव को शिलालेखों में धोर के नाम से भी अभिहित किया गया है ! राजा कृष्ण ने एलपुर (एलोरा) में एक प्रति भव्य शिवमन्दिर का निर्माण करवाया । ई० सन् ७७२ में कृष्ण का देहावसान हो गया।
' जैन शिलालेख संग्रह भाग २, पृ. १२५
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