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वीर सम्वत् १००० से उत्तरवर्त्ती प्राचार्य ]
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आने पर उसके साथ विश्वासघात कर उसकी हत्या करवा दी । कल्हण ने लिखा है कि यह उसके जीवन पर बहुत बड़ा कलंक था ।
विश्वासघात की इस सूचना के मिलते ही गौड़राज के थोड़े से स्वामिभक्त बंगाली युवकों ने बंगाल से काश्मीर की यात्रा की और वहां राजमन्दिर में बलपूर्वक प्रवेश कर वहाँ रखी हुई विष्णुरामास्वामिन् की मूर्ति को विष्णु परिहास केशव की मूर्ति समझ कर उसके टुकड़े-टुकड़े कर डाले । उसी समय काश्मीर के सैनिक मंदिर में आ पहुंचे और उन्होंने उन सब बंगाली युवकों को तलवारों के प्रहारों से खण्डश: काट-काट कर मौत के घाट उतार दिया। इस घटना पर टिप्पणी करते हुए कल्हण ने उन अद्भुतशौर्यशाली स्वामिभक्त वीर बंगाली युवकों को श्रद्धाञ्जलि समर्पित करते हुए लिखा है :
" अपने मृत राजा के प्रति उन बंगाली वीर युवकों की प्रगाढ़ स्वामिभक्ति की, और उनकी इतनी कठिन और लम्बी यात्रा की कहां तक प्रशंसा की जाय । रामास्वामी की मूर्ति आज दिन तक उस मन्दिर में प्रतिष्ठापित न किये जाने की दृष्टि से वह मन्दिर तो आज भी सूना है किन्तु उन वीर स्वामिभक्त गौड़ युवकों के यश से समस्त संसार श्रोतप्रोत है ।"
कल्हरण के कथनानुसार पूर्व से पश्चिम तक और दक्षिण से उत्तर तक विशाल भारत का सम्राट ललितादित्य ई० सन् ६६५ से ७३२, अर्थात् ३७ वर्षो तक शासन करने के पश्चात् मृत्यु को प्राप्त हुआ । इतिहासवेत्ता कनिंघम ने चीन में उपलब्ध एतद्विषयक प्रमाणों के आधार पर ललितादित्य का समय ई० सन् ७२४ से ७६० तक माना है ।
ललितादित्य ने भारत को एक सार्वभौम सत्ता सम्पन्न केन्द्रीय शासन देकर कुछ समय के लिये भारत को एक सशक्त राष्ट्र का रूप दिया किन्तु उसके पश्चात् न तो उसके उत्तराधिकारियों में ही और न भारत के दूसरे राज्यों में ही ऐसा प्रतापी राजा हुआ जो भारत को एकता के शासन सूत्र में श्राबद्ध रख सकता । ललितादित्य की मृत्यु के पश्चात् भारत के अन्तिम सम्राट ललितादित्य का साम्राज्य विघटित हो पुनः छोटे-छोटे राज्यों में विभक्त हो गया ।
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