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________________ ६२२ ] [ जैन धर्म का मौलिक इतिहास-भाग ३ प्राप्त एक शिलालेख' में यशोवर्मन को सार्वभौम सत्तासम्पन्न महाराजा बताया गया है। इससे यह सिद्ध होता है कि उसने मगध के राजा गौड़ को मारकर अथवा पराजित कर बंगाल तक विस्तीर्ण उसके मगध-राज्य पर विजय प्राप्त की थी। | यशोवर्मन के समय में अरब देश के खलीफामों की गध्र दृष्टि आर्यधरा भारत पर लगी हुई थी वे ईराक, ईरान आदि देशों की ही तरह विशाल भारत को भी इस्लामी देश बना देने पर कटिबद्ध थे । सिन्ध प्रदेश पर अरबों की सेनाओं ने अधिकार भी कर लिया था। दूरदर्शी यशोवर्मन ने अरब सेनामों से भारत की रक्षा करने का दृढ़ संकल्प किया । पारसीक देश पर यशोवर्मन के विजय अभियान का जो उल्लेख वाक्पतिराज ने "गउड़वहो" में किया है, उसमें संभवतः वाक्पतिराज ने सिन्धु प्रदेश को ही पारसीक देश के नाम से सम्बोधित किया है। यशोवर्मन का वह पारसीक विजय अभियान संभवतः भारत की परबों के संभावित आक्रमण से रक्षा करने के बढ़ संकल्प का प्रारम्भिक क्रियान्वयन, अथवा अपने उस दृढ़ संकल्प की पूर्ति का प्रथम प्रयास ही था। . ऐसा प्रतीत होता है कि जिस प्रकार हर्षवर्द्धन सम्पूर्ण भारत को सदा सदा के लिए एक शक्तिशाली प्रजेय राष्ट्र बना देने की प्राकांक्षा से एक सार्वभौम सत्तासम्पन्न केन्द्रीय सत्ता की स्थापना करना चाहता था, ठीक उसी प्रकार यशोवर्मन भी भारत की उत्तरी सीमा के पार अरबों के भारत पर बढ़ते हुए दबाव को देखकर विदेशियों से अपनी जन्म-भूमि भारत की स्थायी रूप से सुरक्षा के लिए एक शक्तिशाली केन्द्रीय सत्ता की स्थापना करना चाहता था। चीन देश के स्रोतों से यह सिद्ध होता है कि उसने अरबों के संभावित प्राक्र मण से भारत की रक्षा हेतु बड़े ही दूरदर्शितापूर्ण प्रयास किये। चीन के राजकीय अभिलेखों में उल्लेख है कि भारत के मध्यदेश के राजा यो-शा-फ-मो ने ईस्वी सन् ७३१ में अपने एक मन्त्री बौद्ध भिक्षुक पू-ता-सि-न (बुद्धसेन) के नेतृत्व में अपना एक प्रतिनिधि मण्डल चीन के सम्राट के पास इस प्रार्थना के साथ भेजा कि उत्तर से अरबों और तिब्बतवासियों का भारत पर निरन्तर दबाव बढ़ रहा है। इस सम्भावित संकट से भारत की रक्षा के लिये चीन के सम्राट की भोर से समुचित सहायता प्रदान की जाय। राजतरंगिरणी के अनुवाद में स्टेन द्वारा किये गये उल्लेख के अनुसार काश्मीर के राजा ललितादित्य ने भी ई० सन् ७३६ में चीन के सम्राट के पास अपना प्रतिनिधि भेजकर प्रार्थना की कि काश्मीर पर परववासियों मोर तिम्बतवासियों के बढ़ते हुए दबाव को रोकने के लिये उन्हें .क. भण्डारकर की सूची संख्या २१०५। ब. क्लासिकल एज भारतीय, विद्याभवन बम्बई के पाषार पर पृष्ठ १२६ . साइनो इण्डियन स्टीज, ग. पी. सी. बागची, (१), पृष्ठ ७१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002073
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2000
Total Pages934
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Parampara
File Size16 MB
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