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________________ वीर सम्वत् १००० से उत्तरवर्ती प्राचार्य ] [ ६२१ पुनः उनके साथ यशोवर्मन के सम्मुख लौटना पड़ा। दोनों सेनाओं में घोर युद्ध हा। यशोवर्मन ने गौड़राज की सेना को नष्ट कर गौड़राज को भी रणांगण में धराशायी कर दिया।" इसी घटना को लेकर महाकवि वाक्पतिराज ने 'गउड़वहो' की रचना की है। इससे आगे इस सम्पूर्ण काव्यकृति में गौड़राज का कहीं कोई उल्लेख नहीं किया गया है । इससे यही माभास होता है कि उस गौड़ राजा को मार डालने और उसकी सेना को नष्ट कर देने के पश्चात् यशोवर्मन ने विशाल मगधराज पर अधिकार कर अपनी दिग्विजय का शुभारम्भ किया। - वाक्पतिराज ने गंउडवहो में आगे लिखा है-"गौड़ राजा का वध करने के पश्चात् यशोवर्मन ने इलायची के वृक्षों की सुगन्ध से सुरभित समुद्र तटवर्ती प्रदेशों में अपना विजय अभियान प्रारम्भ किया और उन पर अपनी विजय वैजयन्ती फहराने के पश्चात् यशोवर्मन बंग प्रदेश पर अपनी विजय का अभियान प्रारम्भ किया । उस समय बंग प्रदेश हाथियों के लिए प्रसिद्ध था। यशोवर्मन ने बंगराज को पराजित कर उसे अपना बशवर्ती राजा बनाया। तदनन्तर महाराजा यशोवर्मन मलयगिरि की तलहटी और उसके पार्श्वस्थ प्रदेशों पर विजय प्राप्त करता हुमा दक्षिणी-समुद्र के तट पर पहुंचा। वहां उसने उस रम्य प्रदेश को देखा जहां बाली लंकापति रावण को अपने पार्श्व में दबाये कई दिनों तक भ्रमण करता रहा। समुद्र के सम्पूर्ण तटवर्ती प्रदेशों पर विजय प्राप्त करता हुमा यशोवर्मन पारसीक जनपद की ओर बढ़ा और उसने पारसीक राजा को युद्ध में परास्त किया। तदनन्तर उसने कोंकण प्रदेश को विजित किया । तदनन्तर नर्मदा नदी के तटवर्ती राज्यों को अपने अधीनस्थ राज्य करता हुआ अपनी विशाल एवं विजयिनी सेना के साथ मरुप्रदेश में पहुंचा । मरुप्रदेश से प्रागे बढ़कर वह श्रीकण्ठ (स्थानेश्वर राज्य) प्रदेश होता हुमा कुरुक्षेत्र पहुंचा । तत्पश्चात् वह अयोध्या नगरी की ओर बढ़ा। उसने महेन्द्र पर्वत के राजामों पर विजय प्राप्त की भोर तदनन्तर उसने उत्तर दिशा की भोर प्रयारण किया।" इस प्रकार दिग्विजय करने के अनन्तर महाराजाधिराज यशोवर्मन कन्नौज लौटा। कन्नौज लौटने पर उसने अपने उन सभी अधीनस्थ राजाओं को उनके अपने अपने राज्यों में जाने की माज्ञा दी, जो दिग्विजय में उसके साथ हुए थे। महाकवि वाक्पतिराज ने अपने ग्रन्थ "गउड़वहो" में महाराजा यशोवर्मन की दिग्विजय का इस प्रकार प्रतीव संक्षेप में विवरण प्रस्तुत किया है । यशोवर्मन के आश्रित राजकवि वाक्पतिराज ने अपने 'गउड़वहो' काव्य में यशोवर्मन की इस दिग्विजय यात्रा का वर्णन प्रस्तुत किया है, इस प्रकार की स्थिति में सहज ही यह अनुमान किया जा सकता है कि इस काव्य में ऐतिहासिकता की अपेक्षा कविकल्पना का बाहुल्य हो सकता है। किन्तु वस्तुस्थिति इस प्रकार की नहीं है । नालन्दा से Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002073
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2000
Total Pages934
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Parampara
File Size16 MB
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