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________________ ६२० ] [ जैन धर्म का मौलिक इतिहास भाग ३ चालुक्यराज यशोवर्मन का उल्लेख किया गया है, वही यशोवर्मन वस्तुतः हर्षवर्द्धन की मृत्यु के लगभग ५३ वर्ष के पश्चात् कन्नौज के राजसिंहासन पर बैठा । उस यशोवर्मन के पिता का नाम बलवर्मन और उसके पुत्र का नाम विमलादित्य था, जो कि कालान्तर में राष्ट्रकूट राजवंश का अधीनस्थ राजा अथवा सामन्त था। इस अभिलेख के उल्लेखानुसार यशोवर्मन का विवाह गंगवंशी चाकिराज की बहिन के साथ सम्पन्न हुआ था। ___ यशोवर्मन के सम्बन्ध में इस प्रकार के कतिपय नवीन ऐतिहासिक तथ्यों की उपलब्धि के अनन्तर भी अभी तक यह तथ्य अन्धकार में ही है कि यशोवर्मन चालुक्यों की किस शाखा में उत्पन्न हुना था। इस तथ्य पर प्रकाश डालने वाले प्रमारणों के अभाव में प्रोफेसर भण्डारकर ने यशोवर्मन को चालुक्यों की इतिहास प्रसिद्ध शाखाओं से भिन्न किसी इतर (स्वतन्त्र) शाखा का सदस्य माना है। यशोवर्मन का सम्बन्ध चाहे किसी भी शाखा से हो लेकिन राष्ट्रकूट राजा प्रभूतवर्ष के उपरिउद्ध त अभिलेख से यह तो अन्तिम रूप से सुनिश्चित हो जाता है कि वह चालुक्य वंश का राजा था। यशोवर्मन जिस प्रकार एक महान योद्धा और रणनीति-विशारद था, उसी प्रकार वह विद्याप्रेमी और विद्वानों का सम्मान करने वाला था। महाकवि भवभूति और वाक्पतिराज उसकी राजसभा के विद्वद्रत्न और राजकवि थे। वाकपतिराज ने प्राकृत भाषा में १.२०६ गाथाओं का 'गउड़वहो' नामक एक काव्यग्रन्थ की रचना कर कन्नौज के अधीश्वर इन यशोवर्मन को प्रशंसा की है। 'गउड़वहो' में वाक्पतिराज ने यशोवर्मन के अप्रतिम शौर्य और दिग्विजय यात्रा का जो वर्णन किया है, उसका सारांश इस प्रकार है : "यशोवर्मा महान् प्रतापी राजा था, वह साक्षात् हरि का अवतार था। प्रलय होने पर, हरि का अवतार होने के कारण केवल यशोवर्मा ही विद्यमान रहेगा। उसके अतिरिक्त यह दृश्यमान समस्त जगत् प्रलयकाल में विलुप्त हो जायगा।” "इस प्रकार के महा प्रतापी राजा यशोवर्मा ने वर्षाऋतु की समाप्ति पर एक शुभ दिन में अपनी विजययात्रा प्रारम्भ की। शोण नद होते हुए महाराजा यशोवर्मन विन्द्यगिरि पहुंचा । वहां उसने विन्द्य गुहानिवासिनी देवी के दर्शन कर उसकी स्तुति की। वहां मगध का गौड़ राजा भी आया हुआ था किन्तु यशोवर्मा को देखते ही गौड़राज भयभीत हो वहां से भाग खड़ा हुआ । रणक्षेत्र में पीठ दिखाकर भाग जाना वस्तुतः क्षत्रिय के लिये बड़ा ही लज्जाजनक और मृत्यु से भी भयानक दुःखदायक है, यह विचार कर गौड़राज के सहायक राजा और उनकी सेना पुनः यशोवर्मन के सम्मुख लौट आई । गौड़राज को भी इस प्रकार की स्थिति में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002073
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2000
Total Pages934
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Parampara
File Size16 MB
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