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[ जैन धर्म का मौलिक इतिहास - भाग 3
व्यक्ति अपने आपको अणगार बताते हुए भी इन षड् जीव निकाय के जीवों का इनके आश्रित द्वीन्द्रिय तीन्द्रिय आदि जीवों का संहार करते, करवाते और करने वालों का अनुमोदन करते हैं । कोई भी व्यक्ति अपने जीवन को बनाये रखने के लिये अपने मान सम्मान पूजा आदि के लिये अथवा जन्म-मृत्यु से छुटकारा पाने के लिये व मोक्ष प्राप्ति के लिये अथवा दुःखों से छुटकारा पाने के लिये इन पड्जीव निकाय का आरम्भ समारम्भ करता है, करवाता है और करने वाले को भला समझता है तो वह उसके लिये घोर अहितकर है, महान् अनर्थकारी है और वह उसके प्रबोधि के लिये अर्थात् मिथ्यात्व के घोर अन्धकार में डालने के लिये है ।
आगम के इस स्पष्ट निर्देश के होते हुए भी इन द्रव्यपूजा के प्रवर्त्तक श्रमणों जीव निकाय के घोर प्रारम्भ समारम्भ महारम्भपूर्ण कार्य चैत्यालय निर्माण प्रादि स्वयं करने एवं अपने भक्तों द्वारा करवाने प्रारम्भ कर विशुद्ध श्रमणाचार और धर्म के विशुद्ध स्वरूप में भी आमूलचूल परिवर्तन कर दिया। विशुद्ध धर्म के स्वरूप से लोग शनै: शनै: अपरिचित होने लगे । विशुद्ध श्रमणाचार क्या है यह बताने वाले श्रमणों का प्रभाव प्रायः क्षीण सा हो गया । इसका परिणाम यह हुआ कि विशुद्ध श्रमरण परम्परा एक प्रतीव गौण परम्परा बन कर रह गई और नवोदित द्रव्य परम्पराएं लोकप्रिय बन गईं ।
धर्म के स्वरूप में और श्रमणाचार में आमूलचूल परिवर्तन आने के पीछे केवल शिथिलाचार ही एकमात्र कारण रहा हो, ऐसी बात नहीं है । इसके पीछे क्रमश: निम्नलिखित कतिपय कारण और भी थे :--
(१) काल प्रभाव से लोगों की कष्ट सहन और परिग्रह सहन करने की क्षमता का क्रमिक ह्रास |
(२) हुन्डा अवसर्पिणी काल का प्रभाव । जैसा कि आगमों में उल्लेख है T प्रनन्तानन्त उत्सर्पिणी अवसर्पिणी काल व्यतीत हो जाने के पश्चात्
एक हुन्डा अवसर्पिणी काल आता है । हुन्ड का मतलब है हीन प्रर्थात् निकृष्ट अथवा खराब । इस प्रकार के काल में कतिपय आश्चर्यकारी एवं दुखद घटनायें होती हैं जो प्रायः किसी भी अवसर्पिणी अथवा उत्सर्पिणी काल में घटित नहीं होतीं । इस प्रकार के हुन्डा अवसर्पिणी काल में हीन मनोबल वाले श्रमण श्रमणी वर्ग विशुद्ध श्रमणाचार
का परित्याग कर अनेक प्रकार के और साधना के अध्यात्म पद से आडम्बरों से ओत-प्रोत पथ के पथिक बन जाते हैं ।
शिथिलाचार का सेवन करते हैं उन्मुख हो भौतिक एवं वाय リ
( महानिशीथ में सावद्याचार्य का प्रकरण )
(३) भस्मग्रह का प्रभाव ।
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