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________________ ६१८ ] [ जैन धर्म का मौलिक इतिहास-भाग ३ कमलोचितसद्भुजान्तरश्रीविमलादित्य इति प्रतीतनामा । कमनीयवपुर्विलासिनीनां भ्रमदक्षिभ्रमरालिवक्रपद्मः ।। यः प्रचण्डतरकरवालदलितरिपुनृपकरिघटाकुम्भमुक्त मुक्ताफलविकीरिणत रुचिरक्ताधिकान्तिरुचिरपरीत निजकलत्रकण्ठः शितिकण्ठ इव महितमहिमामोद्यमानरुचिरकीर्तिरशेषगंगमण्डलाधिराज श्रीचाकी राजस्य भागिनेय: भुवि प्रकाशत यस्मिन् कुनुन्गिलनामदेशमयशः परांग्मुखा मनुमार्गेण पालयति सति श्रीयापनीयनन्दिसंघ'नागवृक्षमूलगणे श्रीकित्याचार्यान्वये बहुष्वाचार्येष्वतिक्रान्तेषु व्रतसमितिगुप्तिगुप्तमुनि-वृन्दवन्दितचरणकविलाचार्याणामासीत् ( ? ) तस्यान्तेवासी समुपनतजनपरिश्रमाहारः स्वदानसंतर्पितसमस्तविद्वज्जनो जनितमहोदय: श्री विजयकीर्तिनाममुनिप्रभुरभूत् । अर्ककीतिरिति ख्यातिमातन्वन्मुनिसत्तमः । तस्य शिष्यत्वमायातो नायातो वशमेनसाम् ।। तस्मै मुनिवराय तस्य विमलादित्यस्य शणेश्वर (? सम्भवतः शनिश्चर) पीड़ापनोदाय मयूरखण्डिमधिवसति विजयस्कन्धावारे चाकिराजेन विज्ञापितो वल्लभेन्द्रः इडिगूविषयमध्यवर्तिनं जालमंगलनामयेग्रामं शकनृपसवत्सरेषु शरशिखिमुनिषु (७३५) व्यतीतेषु ज्येष्ठमासशुक्लपक्षदशभ्यां पुष्यनक्षत्रे चन्द्रवारे मान्यपुरवरापरदिग्विभागालंकारभूतशिलाग्रामजिनेन्द्रभवनाय दत्तवान् ........! इस अभिलेख का सारांश यह है कि चालुक्यवंशीय राजा बलवर्म के पुत्र यशोवर्म हुए, जिन्होंने अपने बाहुबल से अपने समय के समस्त नरेन्द्रमण्डल को विजित कर उन्हें अपने चरणों में झकाया। उन महाप्रतापी राजा यशोवर्मन का सूपत्र विमलादित्य हा । वह विमलादित्य बडा ही शौर्यशाली और रणनीतिविशारद था। चालुक्य विमलादित्य राष्ट्रकूट राजवंश का अधीनस्थ राजा था और कूनन्गिल प्रदेश का राजा था। इसका मामा गंगवंशी चाकिराज राष्ट्रकूट राजाओं की ओर से समस्त गंगमण्डल का राज्यपाल नियुक्त किया गया था, जैसा कि इसी ग्रन्थ के पृष्ठ २६७ पर उल्लेख किया जा चुका है। राष्ट्रकूटवंशीय राजा प्रभूतवर्ष-गोविन्द द्वितीय के शासन काल में जब गंगमण्डल का राज्यपाल चाकिराज मयूरखण्डी नामक स्थल पर अपने सैन्य शिविर में ठहरा हुआ था, उस समय उसने अपने स्वामी राष्ट्रकूटवंशीय प्रभूतवर्ष से प्रार्थना की कि यापनीय संघ के प्राचार्य अर्ककीर्ति ने जैन शिलालेख संग्रह, भाग २, लेख सं० १२४, पृष्ठ १३१-१४०, राष्ट्रकूटवंशीय राजा . प्रभूतवर्ष (द्वितीय) का दानपत्र, शक सं० ७३५ । माणिकचन्द्र दिगम्बर जैनग्रन्थमालासमिति, हप्साबाथ, बम्बई ४, सितम्बर १६५२ में प्रकाशित । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002073
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2000
Total Pages934
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Parampara
File Size16 MB
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