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यशोवर्म-कन्नौज का महाराजा
वीर निर्वाण की तेरहवीं शताब्दी के प्रथम चतुर्थ चरण के पास-पास कन्नौज के राजसिंहासन पर यशोवर्मन नामक एक शक्तिशाली राजा बैठा । वाक्पतिराज द्वारा रचित प्राकृत भाषा के उत्कृष्ट एवं महत्वपूर्ण ग्रन्थ "गौड़वहो" और काश्मीर के महाराजा बालादित्य की राजसभा के कवि कल्हण द्वारा रचित राजतरंगिणी से यह तथ्य प्रकाश में आता है कि कन्नौज राज्य के इस शक्तिशाली शासक ने दूरदूर तक दिग्विजय करने के साथ-साथ काश्मीर के महाराजा बालादित्य के साथ मिल कर भारत की उत्तरी सीमा से भारत पर किये जाने वाले अरबों के प्राक्रमण को विफल करने में बड़ी तत्परता और वीरता से काम किया।
पुष्पभूति राजवंश के अन्तिम महाराजा हर्षवर्द्धन की मृत्यु के पश्चात्, इतिहासविदों के अभिमतानुसार लगभग अर्द्ध शताब्दी तक राजनैतिक दृष्टि से बड़ी ही अस्थिरता रही। ई० सन् ७०० के आसपास यशोवर्मन कन्नौज के राजसिंहासन पर बैठा। यशोवर्मन कौन था और राजनैतिक दृष्टि से अत्यन्त महत्वपूर्ण कन्नौज राज्य के राजसिंहासन को उसने कैसे प्राप्त कर लिया, यह सब कुछ अभी तक एक ऐसी पहेली बना हुआ है, जिसका कोई समाधान अद्यावधि दृष्टिगोचर नहीं होता।
___इतिहासज्ञ इस दिशा में प्रयत्नशील रहे। यशोवर्मन के सम्बन्ध में अनेक ऐतिहासिक ग्रन्थों के अवगाहन के अनन्तर जैन वांग्मय में इसके परिचय का हमें इन्हीं दिनों एक स्रोत उपलब्ध हुआ, जो निम्नलिखित रूप में है :
........."प्रभूतवर्ष श्रीपृथ्वीवल्लभराजाधिराज परमेश्वरस्य प्रवर्तमानश्री राज्यविजयसंवत्सरेषु वहत्सु । चारुचालुक्यान्वयगगनतलहरिणलांछनायमान श्रीबलवर्मनरेन्द्रस्य सूनुः स्वविक्रमावजितसकलरिपुनृपशिरः शेखरार्चितचरणयुगलो यशोवर्मनामधेयो राजा व्यराजत । तस्य पुत्रः 'सुपुत्रः कुलदीपक' इति पुराणवचनमवितथमिह कुर्वन्नतितरां धीराजमानो मनोजात इव मानिनीजनमनस्थलीयः (?) रणचतुरश्चतुरजनाश्रयः श्रीसमालिंगितविशालवक्ष स्थलो नितरामशोभत । असो महात्मा
१. Nothing is known of the early history and antecedents of this King.......
(भारतीय विद्याभवन, बम्बई द्वारा प्रकाशित हिस्ट्री एण्ड कल्चर प्राफ इण्डियन पीपुल, क्लासिकल एज, पृष्ठ १२८)
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