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________________ दिगम्बर सम्प्रदाय में काष्ठा संघ की उत्पत्ति दिगम्बर सम्प्रदाय में, वीर नि० सं० १२२३ में प्राचार्य कुमारसेन ने "काष्ठा संघ" नामक एक नवीन संघ की स्थापना की। इस संघ की स्थापना के इतिहास पर संक्षेप में प्रकाश डालते हुए आचार्य देवसेन ने अपनी छोटी सी पर ऐतिहासिक महत्व की पुस्तिका दर्शनसार में लिखा है : "सिरि वीरसेणसीसो, जिणसेणो सयलसत्थविण्णाणी। सिरि पउमणंदि पच्छा, चउसंघ समुद्धरणधीरो ।।३०।। तस्स य सीसो गुणवं, गुणभद्दो दिव्वणाणपरिपुण्णो । पक्खुववाससुट्ठमदी, महातवो भावलिंगो य ।।३१।। तेण पुणो विय मिच्चु, णाऊण मुणिस्स विणयसेणस्स । सिद्धतं घोसित्ता, सयं गयं सग्गलोगस्स ।।३२।। प्रासी कुमारसेणो, णंदियड़े विणयसेण दिक्खियो। सण्णासभंजणेण य, अगहिय-पुरणदिक्खनो जादो ।।३३।। परिवज्जिऊण पिच्छं, चमरं चित्तूण मोहकलिएण। उम्मगं संकलियं, बगडविसएसु सव्वेसु ।।३४।। इत्थीण पुरण दिक्खा, खुद्दयलोयस्स वीरचरियत्तं । कक्कसकेसग्गहणं, छठें च गुणवदं गाम ।।३।। आगमसत्य पुराणं, पायच्छित्तं च अण्णहा किंपि । विरइत्ता मिच्छत्तं, पवट्टियं मूढ लोएसु ॥३६।। सो समणसंघवज्जो, कुमारसेणो हु समयमिच्छत्तो । चत्तोवसमो रुद्दो, कळं संघ परूवेदि ।।३७।। सत्तसए तेवण्णे, विक्कमरायस्स मरणपत्तस्स । णंदियड़े वरगामे, कट्ठोसंघो मुणेयव्वो ॥३८।। णंदियड़े वरगामे, कुमारसेणो य सत्यविण्णाणी । कट्ठो, दंसरणभट्ठो, जादो संल्लेहणाकाले ॥३९॥" अर्थात्-श्री वीरसेरण के शिष्य सकल शास्त्रों के विशिष्ट ज्ञाता जिनसेन नामक प्राचार्य हए। पचनन्दि के पश्चात वे ही एक ऐसे माचार्य थे जो चारों संघों के समीचीनरूपेण संचालन के भार को Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002073
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2000
Total Pages934
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Parampara
File Size16 MB
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