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________________ ६१२ ] [ जैन धर्म का मौलिक इतिहास-भाग ३ समय पश्चात् राजकुमार भोज अपने मातुलों के साथ कान्यकुब्ज पहुंचा। उसने पिता दुन्दुक के दुराचार का सदा-सदा के लिये अन्त कर कान्यकुब्ज के राजसिंहासन पर बैठ अपना परम्परागत अधिकार प्राप्त किया। उसने बप्पभट्टी के पट्टधर दो प्राचार्यों में से नन्नसरि को मोढेरा में ही रखा और गोविंदसरि को अपनी राजसभा में राजगुरु बनाकर रखा। बप्पभट्टी के उपकारों से उऋण होने की उत्कट भावना के साथ राजा भोज ने जिनशासन की महती सेवा की। प्रभावक चरित्र के भोजराजस्ततोऽनेक, राज्यराष्टग्रहाग्रहः । प्रामादप्यधिको जज्ञे, जैनप्रवचनोन्नतौ ।।७६५॥ - इस उल्लेखानुसार राजा भोज ने अपने पितामह महाराजा प्राम की अपेक्षा भी, जैनधर्म की अभिवृद्धि एवं अभ्युन्नति के अत्यधिक कार्य किये। बप्पभटटी सरि ने जीवनभर जिनशासन की प्रभावना के अनेक आश्चर्यकारी और महान कार्य करने के साथ-साथ ५२ प्रबन्धों की रचना कर जैन वांग्मय को श्रीवृद्धि एवं वाग्देवी की महती सेवा की। आचार्य बप्पभट्टी के उन 'तारागण' आदि ५२ कृतियों में से अद्यावधि केवल दो-तीन लघु किंतु अत्यन्त भावपूर्ण कृतियां ही उपलब्ध हो सकी हैं। सांख्यदर्शन के अपने समय के उच्चकोटि के विद्वान्, परम वैष्णव और प्रमुख प्रबन्धकवि वाक्पतिराज जैसे परब्रह्मोपासक संन्यासी को न केवल जैन श्रमणोपासक बनाकर अपितु जैन श्रमण धर्म की दीक्षा देकर बप्पभट्टी ने संसार के समक्ष अपनी अलौकिक-असाधारण प्रतिभा का उदाहरण रखा। बप्पभट्टी की इस प्रकार की असाधारण प्रतिभा, भगवान् अरिष्टनेमि के शिष्य प्राचार्य थावच्चा कुमार और जम्बूस्वामी के शिष्य एवं पट्टधर आचार्य प्रभव का स्मरण करा देती है । शुकदेव जैसे परम भागवत, बहुजनपूज्य, बहुजनसम्मत बहुत बड़े संन्यासी को थावच्चा पुत्र ने और प्रथम श्र तकेवली प्राचार्य प्रभव ने वेद-वेदांग पारगामी पण्डित सय्यंभव को प्रतिबोध देकर श्रमण धर्म में दीक्षित कर लिया। इस प्रकार की असाधारण प्रतिभा के उदाहरण अन्यत्र अल्प हो उपलब्ध होते हैं। प्राचार्य बप्पभट्टी सूरि महान् प्रभावक प्राचार्य, असाधारण प्रतिभा के धनी और जिनशासनरूपी क्षीरसागर के कौस्तुभमरिण तुल्य अनमोल रत्न थे। जैन इतिहास में उनका नाम अमर रहेगा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002073
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2000
Total Pages934
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Parampara
File Size16 MB
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