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[ जैन धर्म का मौलिक इतिहास-भाग ३ प्रश्न चूड़ामणि, शास्त्र के द्वारा किसी भी प्रश्न का समुचित उत्तर प्राप्त करने की विधि से अच्छी तरह भिज्ञ बप्पभट्टी ने कहा- "राजन् ! पापका भोज नामक पौत्र इस दुर्ग पर अधिकार करेगा।" ।
राजगिरि दुर्ग पर बिना अधिकार किये ही लौट जाने में प्रामराज ने अपना अपमान समझा और वह उस दुर्ग के चारों पोर घेरा डाल कर इटा रहा। इसी स्थिति में बारह वर्ष व्यतीत हो जाने पर युवराज दुन्दुक की युवराज्ञी ने एक पुत्र को . जन्म दिया।
आमराज के आदेशानुसार जन्म ग्रहण करते ही उस शिशु को पालने में सुलाकर प्रधानों द्वारा राजा माम के पास लाया गया। उस बालक का मुख दुर्ग के शिखर की भोर कर शिखर को उसके रष्टिपथ में लाया गया और उसी क्षरण दुर्ग पर गोलों की वर्षा की गई। इधर यह किया गया और उपर बिजली की फरक के समान घोर गर्जन करता हुमा दुर्ग का प्राकार पृथ्वी पर मा गिरा।
. सकूटम्ब राजा समुद्रसेन गुप्तद्वार से निकल कर किसी अज्ञात स्थान की पोर चला गया। मामराज ने उसी समय अपनी सेना के साथ दुर्ग में प्रवेश कर उस पर अपना अधिकार कर लिया।
मामराज को उस समय किसी प्रदृष्ट शक्ति से ज्ञात हो गया कि छः मास पश्चात् मागधतीर्थ की यात्रा हेतु नाव से गंगा पार करते समय मगटोड़ा नामक ग्राम के पास उसकी मृत्यु हो जायेगी।
राजगिरि से प्रयाण कर राजा माम बप्पभट्टी के साथ अनेक तीयों की यात्रा करता हुमा कान्यकुब्ज पहुंचा। अपने पुत्र दुदुक को कान्यकुब्ज के राजसिंहासन पर मासीन कर मामराज अपने गुरु बप्पभट्टी के साथ मागम तीर्ष की यात्रा के लिये प्रस्थित हुमा । जिस समय राजा माम प्राचार्य बप्पनट्ठी के साथ नाव में बैठ कर गंगा पार कर रहा था उस समय बप्पभट्टी और मामराज ने देखा कि नाव के पास जल में धुंमा उठ रहा है।
जल में उठते हुये धूम को देख कर बप्पभट्टी ने पामराज से कहा"राजन् ! तुम्हारा अन्तिम समय सन्निकट है, यह देखो मगटोा प्राम भा गया है। अब मन्तिम समय में ही सही, तुम जैन धर्म अंगीकार कर लो।"
राजा माम ने उसी समय बप्पमट्टी से विधिवत् जैन धर्म अंगीकार कर सर्वत्र सर्वदर्शी भगवान् वीतराग प्रभु की शरण ग्रहण की।
प्राचार्य बप्पभट्टी ने माम रावा से कहा-"अभी मेरी पांच 4 प्रायु प्रवशिष्ट है।"
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