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वीर सम्वत् १००० से उत्तरवर्ती प्राचार्य ]
[ ६०५ उत्पाद-व्यय एवं ध्रौव्य-इन तीन गुणों से युक्त किन्तु त्रिकालवर्ती शाश्वत षड्द्रव्यों, षड्जीवनिकाय, पंच अस्तिकाय, जीव, लेश्या, १२ व्रत, पंच महाव्रत, पांच समिति, तीन गुप्ति, चौरासी लाख जीवयोनि, और सम्यग्ज्ञान, सम्यग्दर्शन एवं सम्यग्चारित्र रूपी रत्नत्रयी का उपदेश दिया है। उसको यथातथ्य रूप से समझकर हृदयंगम करना, उस पर अटूट आस्था रखना और उसी उपदेश के अनुसार आचरण करना, यही वस्तुतः समस्त कर्मावरण एवं दुःखों से मुक्ति दिलाने वाला एवं अक्षय-प्रव्याबाष शाश्वत सुख प्रदान करने वाला मोक्षमार्ग है। जो बुद्धिमान प्राणी इस प्रकार की वीतराग वाणी को हृदयंगम कर उस पर अविचल श्रद्धा रखता हुआ वीतराग वाणी के अनुसार आचरण करता है, वही सम्यग्दृष्टि है।"
"राग-द्वेष के पूर्ण विजेता सर्वज्ञ-सर्वदर्शी वीतराग प्रभू ही सच्चे प्राराध्य देव हैं । पंच महाव्रतधारी, पांचों इन्द्रियों और मन का निग्रह करने वाले, पांचों इन्द्रियों के पांचों विषयों से पूर्णतः विरक्त, पांच समिति और तीन गुप्तियों के धारक, प्रागम ज्ञान से सम्पन्न, भव्य जीवों को परमार्थ का प्रतिबोध कराने वाले, बयालीस दोष रहित विशुद्ध आहार ग्रहण करने वाले, षड्जीव निकाय को सदा अभयदान देने वाले और मद-मात्सर्य विहीन ही सच्चे गुरु हैं । ऐसे निस्संग, निष्परिग्रही, निरारम्भी और परोपकारवती गुरु ही वस्तुतः भव्य जनों को संसार सागर से पार उतारने में समर्थ और मोक्ष का शाश्वत सुख साम्राज्य प्रदान कराने में सक्षम होते हैं। जिस प्रकार शरीर अथवा वस्त्र' पर लगे कीचड़ को यदि कीचड़ से ही घोया जाय तो वह साफ शुद्ध होने के स्थान पर और अधिक गन्दा होगा, उसी प्रकार सरागी देव प्रश्वा गुरु की उपासना से मुक्ति प्राप्त नहीं हो सकती । इसके विपरीत सरागी देव गुरु की उपासना करने वाले को और अधिकाधिक सुदीर्घ काल तक भवभ्रमण करना होगा, भयावहा भवाटवी में भटकना पड़ेगा।"
बप्पभट्टी के इस घट के पट उद्घाटित कर देने वाले सर्वसंशयोच्छेदी एवं अन्तस्तल स्पर्शी उपदेश से वाक्यपतिराज के अन्तस्तल में व्याप्त प्रज्ञानान्धकार नष्ट हो गया। उन्होंने कृतज्ञताभरी दृष्टि से बप्पभट्टी की भोर निहारते हुए प्रश्न किया- "भगवन् ! आपने जो धर्म का, मुक्ति का रहस्य बताया उससे मेरी सभी प्रकार की भ्रान्तियां दूर हो गई हैं। किन्तु एक संदेह अभी तक भी मेरे मन में घर किया हुमा है कि यदि अनन्त प्राणी इस मनुष्य लोक से मोक्ष में चले जायेंगे तो अन्ततोगत्वा एक न एक दिन मनुष्य लोक प्राणियों से पूर्णत: रिक्त हो जायगा मौर मोक्ष में भी पूर्णरूपेण उसके सिद्ध जीवों से खचाखच व्याप्त हो जाने के बाद किंचित्मात्र भी स्थान नहीं रहेगा, उस दशा में क्या होगा?"
प्राचार्य बप्पभट्टी ने कहा-"वाक्पतिराज! न तो कभी मानवलोक प्राणियों से रिक्त होगा और न मोक्ष कभी मुक्तात्मामों से भरेगा ही। संसार में सहस्रों नदियां बहती हैं और प्रनादि काल से प्रतिदिन कितनी पृथ्वी को प्रतिपल रेण के रूप में बहा-बहा कर समुद्र में डालती मा रही है। इतना सब कुछ होते हुए भी न तो अभी
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