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[ जैन धर्म का मौलिक इतिहास-भाग ३
यदमोघमपामन्रुप्तम् बीजभज त्वया । प्रतश्चराचरं विश्वं प्रभवस्तस्य गीयसे ॥५७६।। कुलं पवित्र जननी कृतार्था, वसुंधरा पुण्यवती त्वयैव । प्रबाह्यसंवित्सुखसिंधुमग्नं, लग्नं परे ब्रह्मणि यस्य चित्तं ।।५७७॥
इन श्लोकों को सुनते ही वाक्पति ने कहा-“सखे ! तुम्हारे ये श्लोक बड़े प्रशंसनीय हैं, पर क्या यही वेला मिली है तुम्हें इन रसकाव्यों को सुनाने की, क्या यही है आपका मेरे साथ मैत्री सम्बन्ध ? क्या यह सव कुछ बप्पभट्टी जैसे महान् आचार्य के मुख से शोभा देता है ? सखे ! यह इस प्रकार के रसकाव्यों को सुनाने की नहीं अपितु मुझे बोधभरी पारमार्थिक वाणी सुनाने की वेला है।"
प्राचार्य बप्पभट्टी ने उन्हें सान्त्वना देते हुए कहा-"धन्य है आपकी चित्त की एकाग्रता, हम इस प्रकार की चित्त की एकाग्रता की मुक्त कण्ठ से प्रशंसा करते हैं । किन्तु मेरे परम मित्र! आपसे कुछ पूछना है। आपके समक्ष अभी मैंने ब्रह्मा, विष्णु और महेश-इन तीनों देवों का स्वरूप बताया, वह सत्य है अथवा असत्य ? यदि सत्य है तो आप रुष्ट क्यों हो गये ? यदि आप कहते हो कि उन तीनों देवों का जो स्वरूप मैंने बताया वह असत्य है तो वह असत्य हो ही नहीं सकता। उन तीनों का यह स्वरूप निगमागमादि वांग्मय से प्रत्यक्ष है । प्रत्यक्ष में तो संदेह के लिये किंचित्मात्र भी अवकाश नहीं। अब आप यह बताइये कि आप जो यह साधना कर रहे हैं, वह राज्यादि सांसारिक सुखों की प्राप्ति की इच्छा से कर रहे हैं अथवा परमार्थ मोक्ष की अवाप्ति के लिये ? यदि ऐहिक सुखोपभोगों के लिये आराधना कर रहे हैं तो वे तो देवी, देव, राजा, महाराजाओं आदि की आराधना से ही प्राप्त हो जायेंगे। पर यदि परमार्थ-अक्षय, अव्याबाध, शाश्वत सुखधाम मोक्ष की प्राप्ति के लिये आप साधना कर रहे हैं तो शांत चित्त हो इस सारभूत तत्त्व का विचार करो कि ये तीनों देव जो स्वयं ही सांसारिक काम-भोगादि उपाधियों-प्रपंचों में फंसे हए हैं, वे तुम्हें मुक्ति प्रदान कर सकेंगे? इसमें मेरा किंचित्मात्र भी कोई मात्सर्यभाव नहीं है, आप स्वयं इस सम्बन्ध में सब कुछ जानते हैं।"
बप्पभट्टी के मुख से सारभूत तात्विक बात सुनते ही वाक्पतिराज का व्यामोह दूर हुआ। उनकी भ्रान्ति तिरोहित हो गई। उन्होंने बप्पभट्टी के प्रति कृतज्ञता प्रकट करते हुए कहा-"यह मेरे पूर्व पुण्योदय का ही फल है कि आप मेरे प्राध्यात्मिक जीवन की निर्णायक घड़ी में मुझे मुक्ति का सच्चा मार्ग दिखाने यहां आये हैं। कृपा कर आप मुझे तत्वज्ञान प्रदान कीजिये।"
आचार्य श्री बप्पभट्टी ने वाक्पतिराज को जैनधर्म के सारभूत मूल सिद्धान्तों का बोध प्रदान करते हुए कहा-"त्रिलोकपूज्य वीतराग सर्वज्ञ-सर्वदर्शी तीर्थंकरों ने
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