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[ जैन धर्म का मौलिक इतिहास-भाग ३
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राज्यों की पारम्परिक शत्रुता समाप्त हुई। आमराज तथा धर्मराज दोनों ही पारस्परिक मैत्रीभाव के सूत्र में बंध गये।
प्राचार्य बप्पभट्टी ने उस बौद्ध प्राचार्य वर्द्धनकुन्जर को बड़े प्रेम से गले लगाया और उसे जैन सिद्धान्तों के गूढ़ रहस्यों का बोध दे उसे बारह व्रतधारी श्रावक बनाया।
वर्द्धनकुन्जर को सभी प्रकार की परीक्षाएं लेने के पश्चात् दृढ़ विश्वास हो गया कि सुसुप्त्यवस्था हो अथवा जागृत अवस्था-सदा सरस्वती बप्पभट्टी के कण्ठ में विराजमान रहती है। सम्यग्दृष्टि बारह व्रतधारी श्रावक बनने के पश्चात् वह वर्द्धनकुन्जर बड़ी श्रद्धाभक्ति से बप्पभट्टी को नमस्कार कर अपने अभीष्ट स्थान पर चला गया। ग्रामराज और धर्मराज भी बड़े प्रेम-पूर्वक एक दूसरे का अभिवादन कर अपने-अपने स्थान की ओर प्रस्थित हुए।
कालान्तर में प्रामराज और धर्मराज के बीच पुरानी शत्रता पुनः उग्ररूप धारण करने लगी। यशोवर्मा के पुत्र प्रामराज ने विशाल सेना के साथ गौड़ राज्य पर आक्रमण किया। दोनों ओर से भीषण युद्ध हुआ। धर्मराज रणंगण में ही आमराज द्वारा यमघाम को पहुंचा दिया गया। धर्मराज का सामन्त प्रबन्ध कवि वाक्पति राज महाराज आम के सेनापति द्वारा बन्दी बना लिया गया। आमराज की युद्ध में विजय हुई और उसने सम्पूर्ण गौड़ राज्य पर अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया।
प्रबन्धकवि वाक्पतिराज ने कान्यकुब्जेश्वर के सैनिक कारागार में रहते हुए “गौड़वहो" नामक एक श्रेष्ठ काव्य की रचना की। उससे . आमराज उस पर बड़ा प्रसन्न हुआ और वाक्पतिराज को कारागार से मुक्त कर उसे अपनी राज्यसभा का सदस्य बना लिया। राजकवि के रूप में रहते हुए वाक्पतिराज ने आमराज की यशोगाथाओं के अनेक चमत्कारपूर्ण श्लोक बनाये और 'महुमहविजय' नामक एक, ग्रन्थरत्न की भी रचना की । पामराज ने प्रसन्न हो प्रतिवर्ष दो लाख स्वर्ण मुद्रामों की आय की जागीर वाक्पतिराज को प्रदान की।
राजा आम न्यायनीतिपूर्वक प्रजा का पालन और आचार्य बप्पभट्टी के उपदेशानुसार अनेक प्रभावनापूर्ण कार्यों से सद्धर्म का प्रचार-प्रसार करने लगा । इधर वाक्पतिराज को संसार से पूर्णरूपेण विरक्ति हो चुकी थी। वे आमराज से अनुमति ले मथुरा चले गये और वहां सन्यास ग्रहण कर अपने इष्ट की उपासना करने लगे।
कालांतर में एक दिन धर्मोपदेश देते समय बप्पभट्टी ने विभिन्न वर्मों के सम्बन्ध में तुलनात्मक दृष्टि से विवरण प्रस्तुत करते हुए कहा कि विश्व के समस्त धर्मों में जैनधर्म नवनीत के समान सारभूत और उत्तम है। उन्होंने राजा आम
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