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वीर सम्वत् १००० से उत्तरवर्ती प्राचार्य ]
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वह सब कुछ से नाटकीय ढंग और प्रदभत रीति से किया गया था कि राजा आम और बप्पभट्टी के अतिरिक्त किसी अन्य को किंचित्मात्र भी ज्ञात होना तो दूर लवलेशमात्र भी ग्राभास तक नहीं हो पाया कि कान्यकुब्जेश्वर महाराजा आम गौड़राज्याधीश महाराजा धर्म के समक्ष स्वयं उपस्थित हुअा है और उसने प्राचार्य बप्पभट्टी को कान्यकुब्ज ले जाने के सम्बन्ध में महाराजा धर्म को अपनी विज्ञप्ति प्रस्तुत कर दी है।
। दूसरे दिन प्रातःकाल आचार्य बप्पभट्टी ने धर्मराज से जाकर कहा"राजन् ! अब मैं कन्नौज जाने के लिये समुद्यत हूं।"
राजा धर्म ने साश्चर्य प्राचार्यश्री की ओर देखते हुए कहा-"भगवन् ! जब तक पामराज स्वयं मेरे सम्मुख उपस्थित होकर आपको कान्यकुब्ज ले जाने के लिये मुझे न कहें तब तक आप वहां न जाने के लिये वचन दे चुके हैं। क्या आप अपना वह वचन पूरा हुए बिना ही जा रहे हैं ?"
आचार्य बप्पभट्टी ने कहा--"राजन् ! स्वयं प्रामराज ने कल राज्यसभा में आपके समक्ष उपस्थित हो मुझे कन्नौज ले जाने के सम्बन्ध में प्रापकों विज्ञप्ति प्रस्तुत की थी। कल जो दूत आपके समक्ष राजसभा में उपस्थित हुया था, वह पामराज ही तो था । उसने मुझे कान्यकुब्ज ले जाने के लिये
(शेष ५६८ का टिप्पणी-सम्बन्ध) मातुलिंग करे विभ्रत् संष पृष्टश्च सूरिणा । करे ते किं सचावादीद् 'बीजउरा' इति स्फुटम् ॥२४२।। (दूसरा राजा अथवा उत्तर से) दूतेन चाढकीपत्रे, दशिते गुरुराह सः । स्थगीधरं पुरस्कृत्य 'तूपरिपत्त' मित्ययम् ।।२४३॥ (तवारिपत्रम्-तेरा शत्रु)
प्रथोबाच प्रधानश्च, सूरिरेष श्लथादरः। अस्मास्विति प्रतिज्ञां य, दुस्तरां विदधे ध्र वम् ॥२४५।।
विहितेऽत्रापि चेत्पूज्य, प्रायाति प्राज्य पुण्यतः । अस्माभिः सह तद्देवाः प्रतुष्टा नो विचार्यताम् ॥२४६।।
तत्ती सीमली मेलावा केहा, घरण उत्तावली प्रिय भन्द सिरणेहा । विरहिहिं माणुसु जं मरइ तसु कदरण निहोरा, कंनि पवित्तडी जणु जाणइ दोरा ।।२४७।।
(दोरा-दोरा-चौ राजानी) (प्रभावक चरित्र, पृष्ठ ८६)
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