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________________ ५९६ ] [ जैन धर्म का मौलिक इतिहास ----भाग ३ जैसे कवीश्वर मुनीश्वर के काव्यामृतपान एवं संसर्ग का स्वरिणम अवसर हम खोना भी नहीं चाहते। ऐसी स्थिति में बप्पभट्टी से यहां रहने की प्रार्थना के साथ ही उन्हें निवेदन किया जाय कि आमराज के साधारण आमंत्रण मात्र पर आप हमें छोड़कर न जायं । पामराज आपको अपने यहां पुन: ले जाने के लिये धर्मनप के समक्ष यहां राजसभा में स्वयं उपस्थित होकर कहें, तभी आप कान्यकुब्ज लौटें। अन्यथा नहीं।" प्रबन्ध कवि वाकपतिराज ने महाकवि जैनाचार्य बप्पभट्टी की सेवा में उपस्थित हो वंदन-नमन के पश्चात् उनकी सेवा में गौड़राज धर्म नपति की ओर से लक्षणावती नगरी में उन्हें विराजने की गौड़राज के शब्दों में ही प्रार्थना की। प्राचार्य बप्पभट्टी ने वाक्पतिराज द्वारा की गई राजा धर्म की प्रार्थना को अक्षरशः यथावत् रूप में स्वीकार कर लिया। यह सुनकर राजा धर्म के हर्ष का पारावार न रहा। वह उनकी सेवा में उपस्थित हमा। वन्दन-नमन के पश्चात् महाराजा धर्म ने आचार्यश्री से लक्षणावती नगरी में प्रवेश करने की प्रार्थना की। महाराजा धर्म ने बप्पभट्टीसूरि को उनके योग्य समुचित स्थान में ठहराया। राजसभा के पार्षदों और पौरजनों के साथ महाराजा धर्म बप्पभट्टी के उपदेशामृत का पान करता हुमा सुखपूर्वक रहने लगा। प्राचार्यश्री के धर्मोपदेश से गौड़ प्रदेश में भी जिनशासन का पर्याप्त प्रचार-प्रसार हुमा। उधर दूसरे दिन प्रातःकाल बप्पभट्टीसूरि को न देख राजा आम ने नगर में, नगर के बाहर उद्यानों में खोज करने हेतु अपने अनुचर भेजे। पर वे कहीं नहीं मिले । अगले दिन स्वयं राजा माम एकाकी ही प्रातः सूर्योदय से बहुत पूर्व, नगर के बाहर अवस्थित उद्यानों की ओर उन्हें खोजने के लिए प्रस्थित हआ। एक के पश्चात् एक-एक करके उसने सभी उद्यान छान डाले, पर उसे बप्पभट्टीसूरि कहीं दृष्टिगोचर नहीं हुए। प्रवशिष्ट अन्तिम उद्यान में उसने एक आश्चर्यजनक अद्भुत दृश्य देखा कि एक काले सर्प ने नेवले के साथ लड़ते-लड़ते नेवले को मार दिया है। यह अद्भुत दृश्य देखकर पामराज को बड़ा विस्मय हुा । ध्यान से देखने पर प्रामराज को आभास हुआ कि नाग के सिर में मणि है। निर्भीक आमराज ने झपटकर नागराज के फन को पकड़ा और उसमें से मणि निकाल कर नाग को छोड़ दिया। उस उच्चकोटि की अलभ्य श्रेष्ठ मरिण को देखकर पामराज को बड़ी प्रसन्नता हुई। हर्षातिरेकवशात प्रामराज के कण्ठ से उसके प्रांतरिक हर्षोद्गार निम्नलिखित श्लोकार्द्ध के रूप में सहसा प्रकट हए :--.. शस्त्रं शास्त्रं कृषिविद्या, अन्या यो येन जीवति । राजा आम ने राजसभा में उपस्थित हो विद्वन्मंडली के समक्ष इस श्लोकार्द्ध को समस्यापूर्ति हेतु रखा। छोटे-बड़े सभी कवियों ने अपनी-अपनी बुद्धि के अनुसार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002073
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2000
Total Pages934
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Parampara
File Size16 MB
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