SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 653
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वीर सम्वत् १००० से उत्तरवर्ती भाचार्य 1 [ ५६५ किया और उसे समस्या पूर्ति हेतु बप्पभट्टी के समक्ष रखा। सिद्धसारस्वत महाकवि बप्पभट्टी ने तत्काल यथातथ्यरूपेण समस्या पूर्ति कर दी। उस नितरां निगूढ रहस्य के इस प्रकार अनायास ही प्रकट हो जाने से प्रामराज मर्माहत, स्तब्ध एवं सशंक हो उठा । पामराज की विकृत मुखाकृति और वक्र एवं सशंक भावभंगिमा को देखकर प्राचार्य बप्पभट्टी तत्काल वहां से उठकर अपने विश्राम-स्थल पर लौटे और उन्होंने अपने सब साधुनों को तत्काल वहां से विहार करने का आदेश दिया। जाते समय द्वार के कपाट पर बप्पभट्टी ने निम्नांकित श्लोक लिख दिया : यामः स्वस्ति तवास्तु रोहणगिरेमत्तः स्थितिप्रच्युता, वतिष्यन्त इमे कथं कथमिति स्वप्नेऽपि मैवम कृथाः । श्रीमस्ते मणयो वयं यदि भवल्लब्धप्रतिष्ठास्तदा, ते शृङ्गारपरायणाः क्षितिभुजो मौलौ करिष्यन्ति नः ।।१६१।। (प्रभावक चरित्र) अर्थात्-हे रत्नों के उत्पत्ति केन्द्र रोहण गिरिराज ! हम तो जा रहे हैं, तुम्हारा कल्याण हो। तुम कभी स्वप्न में भी इस प्रकार का विचार अपने मन में न लाना कि मेरे पाश्रय से पृथक् हुआ यह रत्न कहां, किस दिशा में और किस प्रकार रहेगा? श्रीमन् ! हम आपके रत्न हैं, आपसे हमने प्रतिष्ठा प्राप्त की है। प्रतः शृङ्गाररसिक सभी मुकुटधर महिपाल हमें तत्काल अपने सिर पर बैठा लेंगे। तदनन्तर संघ एवं पामराज को बिना कुछ कहे-सुने ही आचार्य बप्पभट्टी ने अपने मुनिमण्डल के साथ कान्यकुब्ज से विहार कर दिया। अप्रतिहत विहार क्रम से अनेक स्थानों में विचरण करते हुए वे गौड़ प्रदेश की राजधानी लक्षणावती नगरी के बाहर एक उद्यान में ठहरे । गौड़राज महाराजा धर्म की राजसभा के विद्वशिरोमरिण प्रबन्ध कवि वाक्पतिराज को जब ज्ञात हुआ कि महाकवि बप्पभट्टी नगर के बाहर एक उद्यान में आये हुए हैं, तो वह बड़ा प्रसन्न हुआ। वाक्पतिराज ने तत्काल महाराजा धर्म की सेवा में उपस्थित हो, उसे प्राचार्य बप्पभट्टी के आगमन की सूचना देते हुए निवेदन किया-"पृथ्वीपाल ! साक्षात् बृहस्पति तुल्य सिद्धसारस्वत कवि बप्पभट्टी हमारे सौभाग्य से यहां आये हैं।" यह सुनते ही धर्म नपत्ति पुलकित हो उठा और बोला--"कवि कुलकुमुदचंद्र जैनाचार्य बप्पभट्टी जिस दिन हमारे यहां पा जायं, वह दिन वस्तुतः हमारे लिये परम सौभाग्यशाली होगा। केवल एक ही बात विचारणीय है कि प्रामराज के साथ हमारे सम्बन्ध शत्रुतापूर्ण हैं। बप्पभट्टी हमारे यहां रह जायं और आमराज द्वारा बुलाये जाने पर पुनः उसके पास लौट जायं तो, उस अवस्था में हमारा वस्तुतः लोकदृष्टि से बड़ा तिरस्कार होगा, अपमान होगा। इतना सब कुछ होते हुए भी बप्पभट्टी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002073
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2000
Total Pages934
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Parampara
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy