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________________ [ जैन धर्म का मौलिक इतिहास-भाग ३ मात्य आदि प्रधान पुरुषों को प्राचार्य सिद्धसेन की सेवा में प्रेषित कर विद्वान् मुनि बप्प भट्टी को उनके साथ ही कान्यकुब्ज भेजने की प्रार्थना की । संघ-प्रभावना को दृष्टिगत रखते हुए प्राचार्य सिद्धसेन ने कतिपय गीतार्थ मुनियों के साथ अपने परम प्रिय शिष्य बप्पभट्टी को कान्यकुब्ज के लिये विदा किया। नगर से पर्याप्त दूरी पर बप्पभट्टी के आगमन का समाचार सुन कर स्वयं कान्यकुब्जेश्वर उनके सम्मुख गया। वन्दन-नमन, अभिवादन, कुशल प्रश्न आदि के पश्चात् पाम राज ने बप्पभट्टी से कान्यकुब्ज राज्य के पट्टहस्ती पर बैठकर नगर प्रवेश करने की प्रार्थना की। . बप्पभट्टी ने कहा-"राजन् ! मैंने सभी प्रकार के सावद्य कार्यों एवं संग प्रादि का परित्याग कर पंच महाव्रत धारण किये हैं। पद्रहस्ती पर बैठने से तो मेरे श्रमणाचार में अतिचार लगेगा।" इस पर राजा आम ने कहा-"भगवन् ! मैंने आपके समक्ष पहले प्रतिज्ञा की थी कि मुझे राज्य मिलने पर वह राज्य प्रापको दे दूंगा। यह श्रेष्ठ पट्ट हस्ती राज्याभिषेक का ही प्रतीक है। इस पर आपके बैठने से मेरी प्रतिज्ञापूर्ण हो जायगी । अन्यथा अपनी प्रतिज्ञा पूरी न कर पाने का शल्य मेरे हृदय में जीवन भर खटकता रहेगा।" ___यह कहते हुए माम राज ने बप्पभट्टी को अपने प्रलम्ब बाहु-पाश में प्राबद्ध कर बड़े ही प्रेम से बलात् अभिषेक-हस्ती की पीठ पर सजी अम्बावारी में रखे सिंहासन पर बैठा दिया।' नगर के प्रवेश द्वार से राजप्रासाद तक के मुख्य पथों के दोनों ओर खड़े माबालवृद्ध नागरिकों ने विद्वान् मुनिपुङ्गव बप्पभट्टी का अभूतपूर्व स्वागत किया। भूपः समग्रसामग्या, सम्मुखीनस्ततोऽगमत् । मुंगरोहणे विद्वत्कुंजरस्यर्थनां व्यधात् ।।३।। बप्पमट्टिरुवाचाथ, भूपं शमवतां पतिः । सर्वसंगमुचां नोऽत्र, प्रतिज्ञा हीयतेतमाम् ।।४।। राजोबाचे वः पुरा पूर्व यन्मया प्रतिशुभ्र वे। राज्यमाप्तं प्रदास्यामि, तल्लक्ष्म बरबारणः ।।८।। इत्यालाप्य बलाद पट्टसरे परणीधरः । जितक्रोपावभिन्नानपतवाचतुष्टयम् ।।८७॥ ........................ प्रावेशयत् शमीश्रेणीश्वरमत्युत्सवात् पुरम् ।।८।। (प्रभावक चरित्र, पृ० ९२) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002073
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2000
Total Pages934
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Parampara
File Size16 MB
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