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________________ देवद्धिगरिण क्षमाश्रमण स उत्तरवर्ती काल के इतिहास से सम्बन्धित कतिपय अज्ञात तथ्य वीर निर्वाण की पहली सहस्राब्दि के पश्चात् का जैनधर्म का इतिहास लिखने का आज तक जिन-जिन विद्वानों ने प्रयास किया, लम्बे प्रयास के पश्चात् प्रायः उन सभी ने केवल यह कहकर एक तरह से कार्य की गतिविधि को स्थगित कर दिया :--"वीर निर्वाण के एक हजार वर्ष पश्चात् का अथवा अन्तिम पूर्वघर। आर्य देवद्धिगरिण क्षमाश्रमण के पश्चात् का पांच सौ सात सौ वर्षों का जैनधर्म का इतिहास तिमिराच्छन्न है, विस्मृति के घनान्धकार में विलीन हो चुका है। यही कारण है कि उन पांच सौ सात सौ वर्षों की अवधि के जैन इतिहास से सम्बन्धित न तो कोई शृंखलाबद्ध तथ्य उपलब्ध होते हैं और न विकीर्ण तथ्य ही।" , इस तथ्य को विक्रम की चौदहवीं शताब्दी के प्रथम चरण में हए प्राचार्य प्रभाचन्द्र ने प्रकट किया है। प्राचार्य प्रभाचन्द्र ने दृढ़ संकल्प किया कि प्राचार्य हेम. चन्द्र द्वारा 'परिशिष्ट पर्व' नामक ग्रन्थ में उल्लिखित जैन इतिहास से आगे का इतिहास वे लिखें। उन्होंने अपने इस संकल्प की सिद्धि के लिये वर्षों तक अथक प्रयास किया। उन्होंने उस समय उपलब्ध सम्पूर्ण जैन वांग्मय का आलोडन व मन्थन किया, अनेक वयोवृद्ध बहुश्रु त आचार्यों तथा विद्वानों से ऐतिहासिक तथ्य प्राप्त करने में किसी प्रकार की कोर-कसर नहीं रखी किन्तु वे अपनी इच्छा के अनुरूप इतिहास लिखने में अपने संकल्प के अनुसार सफल नहीं हो सके । सभी गणों अथवा गच्छों की तो बात ही दूर, वे किसी एक गण अथवा गच्छ का भी आद्योपान्त क्रमबद्ध इतिहास नहीं लिख पाये। अथक प्रयास के अनन्तर कतिपय गणों एवं गच्छों के भिन्न-भिन्न समय में हुए २१ प्राचार्यों के पूर्वापर क्रम-विहीन जीवन-चरित्र बड़ी कठिनाई से वीर निर्वाण सम्वत् १३३४ में अपनी रचना 'प्रभावक चरित्र' में लिखकर ही उन्होंने सन्तोष कर लिया । उन २१ प्राचार्यों में से कतिपय तो चैत्यवासी परम्परा के हैं । अपनी इस असफलता को उन्होंने अपने उक्त ग्रन्थ की प्रशस्ति की 'दुष्प्रापत्वादमीशां विशकलिततर्यकत्र चित्रावदातं' इस पंक्ति में स्पष्ट रूप से स्वीकार किया है। प्रभावक चरित्र के रचनाकार आचार्य प्रभाचन्द्र के उत्तरवर्ती काल में भी जैन धर्म का सांगोपांग इतिहास लिखने के प्रयत्न समय-समय पर अनेक विद्वानों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002073
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2000
Total Pages934
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Parampara
File Size16 MB
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