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________________ वीर सम्बत् १००० से उत्तरवर्ती प्राचार्य । [ ५८१ शिशोदिया सांडेसरा, चउदसिया चउहाण । चैत्यवासिया चावड़ा, कुलगुरु एह बखाण ।। प्रभावक चरित्र में भी चैत्यवासियों के मुख से वनराज चावड़ा पर चैत्यवासी आचार्य देवचन्द्रसूरि द्वारा किये गये उपकारों के प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट करने हेतु वनराज की आज्ञा से चैत्यवासियों द्वारा असम्मत अन्य सभी जैन परम्परा के साधु-साध्वियों का पाटण के विशाल राज्य में प्रवेश निषेध की राजाज्ञा प्रसारित किये जाने का अधोलिखित रूप में विवरण मिलता है :--- अनुयुक्ताश्च ते चैवं प्राहुः शृणु महीपते ! पुरा श्री वनराजोऽभूत् चापोत्कटवरान्वयः ।।७१।। स बाल्ये वद्धित श्रीमद्देवचन्द्र ण सूरिणा । नागेन्द्रगच्छभूद्धार प्राग्वराहोपमास्पृशा ।।७२।। पचाश्रयाभिधस्थानस्थितचत्य निवासिना । . पुरं स च निवेश्येद ममत्र राज्यं ददौ नवम् ।।७३।। वनराजविहारं च तत्रास्थापयत प्रभुः । कृतज्ञत्वादसौ तेषां गुरूणामहणं व्यधात् ।।७४।। व्यवस्था तत्र चाकारि संघेन नपासाक्षिकम् । सम्प्रदायविभेदेन लाघवं न यथा भवेत् ।।७५।। चैत्यगच्छयतिवातसम्मतो वसतान्मुनिः । नगरे मुनिभिर्नात्र वस्तव्यं तदसम्मतैः ।।७६।।' वनराज ने पाटण नगर का विक्रम सं०८०२ में शिलान्यास करते समय भगवान पार्श्वनाथ के मन्दिर की नींव का शिलान्यास भी किया। पाटण नगर को अपनी राजधानी बनाने के पश्चात् वनराज ने पार्श्वनाथ के मन्दिर की प्रतिष्ठा अपने गुरु चैत्यवासी प्राचार्य शीलगुण सूरि के हाथों निष्पन्न करवाई । पार्श्वनाथ भगवान् के उस मन्दिर का नाम वनराजविहार भी रखा गया। उस वनराज विहार के सम्बन्ध में इस प्रकार का उल्लेख भी उपलब्ध होता है कि वनराज ने यह विहार अपनी माता की सुविधा के लिये बनवाया जिससे कि वह प्रतिदिन पार्श्वप्रभू की पूजा कर सके । वनराज की माता भी परम जिनोपासिका थी। __ इस प्रकार वनराज चावड़ा को एक विशाल एवं शक्तिशाली गुर्जर राज्य की स्थापना के अपने जीवन के लक्ष्य की पूर्ति में चैत्यवासी प्राचार्य शीलगुणसूरि, उनके शिष्य देवचन्द्रसूरि, चैत्यवासी जैन संघ और जैन मनीषियों का प्रारम्भ से अन्त तक ' प्रभावक चरित्र, अभयदेवरिचरितम्, पृष्ठ १६३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002073
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2000
Total Pages934
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Parampara
File Size16 MB
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