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वीर सम्वत् १००० से उत्तरवर्ती प्राचार्य ]
[ ५७६ को अपने चरों से ज्ञात हो गया कि वनराज ने अजेय शक्ति एकत्रित कर ली है अतः उसने गजरात की ओर से अपना मुख मोड़ लिया।
अन्ततोगत्वा लम्बे संघर्ष के पश्चात् क्रमशः गुर्जर भूमि के छोटे बड़े अनेक क्षेत्रों पर अपना आधिपत्य स्थापित करते-करते वनराज चावड़ा गुर्जर भूमि के विशाल एवं शक्तिशाली राज्य का स्वामी बन गया।
अपने गुरु शीलगुणसूरि के निर्देशानुसार वनराज ने विक्रम सं० ८०२ की वैशाख शुक्ला अक्षय तृतीया के दिन शीलगुणसूरि द्वारा बताई गई भूमि पर अरणहिल्लपुरपत्तन नगर की नींव का शिलान्यास किया।
महाराजा वनराज ने चापोत्कट राजवंश के राजसिंहासन पर आरूढ होते समय अपनी धर्मबहिन श्रीदेवी से ही पूर्वकृत संकल्प के अनुसार राजतिलक करवाया।
___ उसने श्रीमाली जैन जाम्ब-अपर नाम चांपराज को जंगल में की गई अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार अपना मंत्री बनाया। जाम्ब के उत्तराधिकारी वंशधर पीढ़ियों प्रपीढ़ियों तक गुर्जर राज्य के राजकार्यों में सक्रिय योगदान देते रहे। जाम्ब का वंश बड़े लम्बे समय तक मन्त्रीवंश के रूप में गुर्जरभूमि में विख्यात रहा।
वनराज ने पाटण को बसाते समय गांभू के निवासी नीना नामक श्रेष्ठ को पाटण बुलाकर उसे परिवार सहित पाटण में बसाया । वनराज ने नीना को महामंत्री पद प्रदान कर उसे पाटण नगर का महादण्डनायक भी बनाया। जिस प्रकार नन्दिवर्धन (प्रथम नन्द) को कल्पाक महामात्य के रूप में मिला और उसने नन्द राजाओं को पीढ़ी प्रपीढ़ी के लिये एक कुशल एवं स्वामिभक्त अमात्यवंश प्रदान किया उसी भांति यदि यह कहा जाय तो अतिशयोक्ति नहीं होगी कि अहिल्लपुर पत्तन के प्रथम महामन्त्री के रूप में महाराजा वनराज द्वारा मनोनीत महामन्त्री नीना ने भी गुर्जरभूमि के राजवंशों को नीति निपुण एवं स्वामिभक्त जैन अमात्यवंश प्रदान किया। नीना का वंशज लहिर चापोत्कट राजवंश के अन्तिम राजा के शासनकाल में और मूलराज सोलंकी के राज्यकाल में भी दण्डनायक रहा। इसी नीना महामन्त्री के वंशज वीर और नेढ भी पाटण के दण्डनायक रहे । दण्डनायक वीर का पुत्र विमल भी भीमदेव सोलंकी के शासन काल में गुजरात का मंत्री एवं दण्डनायक रहा । इसी प्रकार मंत्री धवल, महामन्त्री आनन्द आदि अनेक अमात्य इसी अमात्यवंश में हुए । गुर्जरेश जैन महाराजा कुमारपाल का महामात्य पृथ्वीपाल भी नीना महामन्त्री का ही वंशधर था।
इस प्रकार सुयोग्य व्यक्तियों के चयन में वनराज बड़े ही निपुण और अद्भुत् सूझ-बूझ के धनी थे। जहां तक कृतज्ञता ज्ञापन का प्रश्न है चापोत्कट राजवंश
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