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[ जैन धर्म का मौलिक इतिहास - भाग ३
"तुम मेरी धर्म बहिन हो" - यह कहते हुए वनराज ने श्रीदेवी द्वारा दी गई शिक्षाओं को अपने जीवन में ढालने का आश्वासन देते हुए अपना आन्तरिक दृढ़ संकल्प प्रकट किया कि जिस समय वह राजसिंहासन पर बैठेगा तो उस समय अपनी धर्मबहिन श्रीदेवी के हाथ से ही राजतिलक करवायेगा ।
३. इसी प्रकार वनराज ने चावड़ा राजवंश के राजसिंहासन पर आसीन होने से पूर्व ही अपने सांधिवैग्रहिक अथवा परम विश्वासपात्र अथवा अपने रहस्यपूर्ण कार्य-कलापों में गुप्त मन्त्ररणा कारक मन्त्री मोढ़ जातीय जैन श्री आशक का मनोनयन भी कर लिया था ।
जाम्ब श्रेष्ठी वनराज से जंगल में भेंट के पश्चात् समय-समय पर मिलकर उसे अपने बुद्धि बल से अर्थ प्राप्ति के उपाय बता कर उसे धन प्राप्ति करवाता रहा । श्रेष्ठि जाम्ब ने एक दिन देखा किं भुवड राजा के राजस्व अधिकारी राजस्व की उगाही के लिये गुजरात में आये हुए हैं । जाम्ब ने उनसे सम्पर्क साध कर उन्हें भूराजस्व आदि की वसूली में बड़ी सहायता की और वह भुवड़ के राजस्व अधिकारियों का परम प्रीतिपात्र एवं विश्वास पात्र बन गया। जाम्ब ने उगाही की धन राशि को स्वर्ण मुद्राओं के रूप में परिवर्तित करवाया ।
राजस्व की पूरी वसूली हो जाने के पश्चात् भुवड़ के अधिकारियों की कल्याणी की ओर लौटने की तिथि निश्चित हुई । जाम्ब ने बड़े ही गुप्त ढंग से वनराज से सम्पर्क साध कर भुवड़ के अधिकारियों के लौटने के मार्ग एवं तिथि आदि से उसे अवगत कर दिया ।
वनराज भुवड़ के कोष रक्षक सैनिकों की संख्या से चौगुनी संख्या में अपने सैनिकों को साथ ले भुवड़ के राज्याधिकारियों के लौटने के मार्ग में उन पर आक्रमण करने के लिये उपयुक्त स्थान पर वृक्षों की ओट में अपना शिविर डाल दिया ।
भुवड़ के राजस्व अधिकारी विपुल धनराशि एवं सैनिकों के साथ ज्यों ही उस वन में पहुंचे वनराज अपने सैनिकों के साथ उन पर टूट पड़ा वनराज के प्रबल आक्रमण के समक्ष नहीं टिक सके । कुछ ही सैनिक क्षत-विक्षत हो धराशायी हो गये ।
। भुवड़ के सैनिक क्षणों में
भुवड़
के
इस आक्रमण में वनराज को २४ लाख स्वर्ण मुद्राएं, ४०० हाथी और शकट, शस्त्रास्त्र आदि अनेक प्रकार की सामग्री प्राप्त हुई ।
इतनी बड़ी धनराशि एकत्रित हो जाने पर वनराज ने एक शक्तिशाली सेना का गठन कर अपने पैत्रिक राज्य पर अधिकार करना आरम्भ कर दिया । भुवड़
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घोड़े, अनेक
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