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वीर सम्वत् १००० से उत्तरवर्त्ती प्राचार्य ]
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२. संघर्ष के दिनों में अपने सैनिकों की आवश्यकतापूर्ति के लिए वनराज को रात्रि के समय काकर नामक ग्राम के श्रीमाली जातीय जैन श्रीमन्त के घर में सेंध लगाने के लिये बाध्य होना पड़ा । उस घर के किसी एक कक्ष में घुसते ही उसने एक भाण्डागार के कपाट खोलकर उसमें अपना हाथ डाला । संयोग की बात थी कि उसका हाथ अंधकार के कारण दही से भरे चौड़े मुंह के एक पात्र में जा पड़ा । जब उसने अनुभव किया कि उसका हाथ दही पर लगा है तो वह बिना कुछ लिये ही तत्काल खाली हाथ वहां से लौट गया ।
प्रातःकाल जब घर वालों को पता चला कि घर में रात्रि के समय संघ लगी है, तो घर में अच्छी तरह छानबीन की गई । केवल दघि दुग्धादि के भाण्डागार के कपाट खुले देखकर और दही में किसी के हाथ के रेखाचिह्न देखकर सब घर वालों को पूरा विश्वास हो गया कि सेंध लगी अवश्य है किन्तु घर में से कोई भी वस्तु नहीं है ।
श्रष्ठि की बहन श्रीदेवी ने दही के उस भाण्ड को बाहर निकालकर देखा तो उसके श्राश्चर्य का पारावार नहीं रहा। उसने अपने भाई और पारिवारिक जनों को कहा - "जो व्यक्ति हमारे घर में संघ डालने प्राया था, वह कोई साधारण व्यक्ति नहीं अपितु वह तो कोई महान् भाग्यशाली प्रतापी पुरुष है । उसके हाथ की रेखा के जो चिह्न दही की ऊपरी सतह पर उभरे हैं, वे पूर्णतः स्पष्ट नहीं हैं किन्तु जो एक-दो रेखाचिह्न स्पष्ट दिख रहे हैं, उनसे सुनिश्चित रूपेण यह कहा जा सकता है कि या तो वह वर्तमान में ही कोई महाप्रतापी पुरुष है अथवा निकट भविष्य में ही उसका सूर्य के समान भाग्योदय होने वाला है । मुझे आश्चर्य है कि इस प्रकार के भाग्यशाली पुरुष को सेंध लगाने की आवश्यकता क्यों पड़ी ।"
श्रीदेवी ने उस घटना की वास्तविकता को न समझ पा सकने के कारण अपने मन में उत्पन्न हुई अन्तर्व्यथा को अभिव्यक्त करते हुए कहा- "क्या ही अच्छा हो कि वह पुरुष एक बार अपने घर में पुनः प्रावे, तो मैं उसके हाथ की रेखानों को ठीक से देखूं और उसे बताऊं, कि वास्तव में वह क्या है और क्या होने वाला है ।"
कर्ण - परम्परा से श्रीदेवी द्वारा प्रकट किये गये उद्गार वनराज तक भी पहुंच गये। दूसरे दिन वह छद्मवेष में काकर के उस श्रेष्ठि के घर पहुंचा और उसने उस श्रेष्ठ के साथ उसकी बहिन श्रीदेवी से साक्षात्कार किया । श्रीदेवी ने उसके लक्षणों एवं हस्तरेखाओं से पहचान लिया कि यही वह पुरुष है, जिसके हाथ का निशान दही के भाण्ड में अंकित दिखाई दिया था । श्रीदेवी ने वनराज को अपना धर्मभ्राता मान कर उसके हाथ में अंकित रेखानों को देखा और कहा कि निकट भविष्य में ही आप एक महान् साम्राज्य के स्वामी होने वाले हैं । उसने बड़े ही स्नेह सम्मान के साथ वनराज को अपने घर भोजन करवाया और बातों ही बातों में उच्च आदर्शो पर अटल रूप से स्थिर रहने की उसे प्रेरणाप्रद शिक्षा भी दी ।
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