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वीर सम्वत् १००० से उत्तरवर्ती प्राचार्य ]
[ ५७१ मान्यता के अनुसार ३४वें युगप्रधान का देहावसान वीर नि०सं० १३६० और दूसरी मान्यता के अनुसार वीर नि० सं० १३५० में होना भी अनुमानित किया जा सकता है।
इसके अतिरिक्त "तित्थोगाली पइन्नय" "दुस्समाकाल समण संघ थयं" की अपेक्षा अति प्राचीन होने के साथ ही साथ तीर्थ के उद्गम, प्रवाह, ह्रास, अवसान अथवा व्यवच्छेद जैसी आत्यन्तिक महत्त्व की अनेक ऐतिहासिक घटनाओं पर प्रकाश डालता है, इस दृष्टि से भी एतद्विषयक इसका उल्लेख तब तक प्रामाणिकता की कोटि में प्रविष्ट होने योग्य है, जब तक कि इससे भी प्राचीन और विश्वसनीय कोई अन्य प्रमाण इसके विपरीत प्रकाश में न पा जाय ।
इन सब तथ्यों के पर्यालोचन से यही निष्कर्ष निकलता है कि माढर संभूति ३३वें और संभूति ३४वें युगप्रधानाचार्य थे।
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