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[ जैन धर्म का मौलिक इतिहास-भाग ३ भी अपनी दिग्विजय यात्रा में दक्षिण के अथवा विभिन्न प्रदेशों के जैन राजापों को वैदिक मत का अनुयायी बनाया हो। इस अभियान से जैन संघ पर यदि कोई घातक प्रहार हुआ होता तो शंकराचार्य से उत्तरवर्ती काल में भी राष्ट्रकूट, गंग, होय्सल, कदम्ब प्रादि राजाओं द्वारा जैनधर्म के अभ्युत्थान के लिए किये गये कार्यों का विवरण प्राज जो शिलालेखों में उपलब्ध होता है वह नहीं होता।
एक बहुत ही महत्वपूर्ण उल्लेखनीय तथ्य यह है कि कुमारिल्ल भट्ट और शंकराचार्य द्वारा सभी दर्शनों के विरुद्ध जो धार्मिक अभियान चलाया गया उससे बौद्ध धर्म आर्यधरा से पूर्ण रूप से ही तिरोहित हो गया । किन्तु जैन धर्म की नींव विश्व कल्याणकारी ऐसे सिद्धान्तों पर आधारित थी कि बौद्धों के समान ही अथवा बौद्धों से भी अधिक कुमारिल्ल भट्ट एवं शंकराचार्य द्वारा जैनों के विरुद्ध किये गये प्रचार के उपरान्त भी जैनधर्म आर्यधरा के जीवित और सम्मानित धर्म के रूप में अपने अस्तित्व को बनाये रहा।
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