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श्रमरण भगवान महावीर के ३९वें पट्टधर प्राचार्य
श्री किशन ऋषि
जन्म
वीर नि. सं. १२०८
दीक्षा
" , १२३२ प्राचार्य पद
" , १२६३ स्वर्गारोहण
, , १२८४ गृहवास पर्याय - २४ वर्ष सामान्य साधुपर्याय -
३१ वर्ष आचार्य पर्याय
२१ वर्ष पूर्ण साधु पर्याय
५२ वर्ष पूर्ण मायु
७६ वर्ष चतुर्विध तीर्थ के प्रवर्तक अन्तिम तीर्थङ्कर शासनेश भगवान् महावीर के ३८वें पट्टधर प्राचार्य श्री भीमऋषि के स्वर्गगमन के अनन्तर प्रभु के ३९वें पट्टधर के रूप में मुनिश्रेष्ठ श्री किशन ऋषि को चतुर्विध तीर्थ ने वीर नि. सं. १२६३ में प्राचार्य पद पर प्रतिष्ठित किया। अपने २१ वर्ष के प्राचार्य काल में आपने चतुर्विध तीर्थ को अध्यात्म साधना में अग्रसर करते रहकर जिनशासन की महती सेवा की।
प्रापके प्राचार्य काल में वि. सं. ८०२ तदनुसार वीर नि. सं. १२७२ में चैत्यवासी परम्परा के महाप्रभावशाली प्राचार्य शीलगुण सूरि ने जो कि गुजरात के शक्तिशाली राजा वनराज चावड़ा के धर्म गुरु थे, अपने परम भक्त राजा वनराज चावड़ा को कहकर इस प्रकार को राजाज्ञा प्रसारित करवा दी कि जिससे चैत्यवासी परम्परा के साधु-साध्वियों को छोड़ शेष किसी अन्य परम्परा के साधु-साध्वी पाटण राज्य में विचरण करना तो दूर, उसकी सीमाओं में प्रवेश तक न कर पाये ।
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