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________________ ४ ] जैन धर्म का मौलिक इतिहास-भाग ३] क्रमिक काल दिया गया है, उसमें पुष्यमित्र, संभूति, माढर संभूति, ज्येष्ठांग गणि, फल्गुमित्र और सुमिण मित्र-इन ६ युगप्रधानाचार्यों के अनन्तर वीर नि० की बीसवीं शताब्दी के एक विशिष्ट श्र तधर आचार्य विशाख मुनि का उल्लेख किया गया है, जो इस प्रकार है :-- वरिस सहस्सेहिं इहं दोहिं, विसाहे मुरिणम्मि वोच्छेदो। वीर जिण धम्मतित्थे, दोहिं तिन्नि सहस्स निद्दिट्ठो ।। ८२० ।। । अर्थात वीर नि० सं० २००० में विशाख मुनि के स्वर्गस्थ हो जाने पर वीर नि० सं० २००० से ३००० के बीच की अवधि में कतिपय अंगों का ज्ञान लुप्त हो जायगा। तित्थोगाली पइन्नय की उपरिलिखित गाथा आज से लगभग ५०० बर्ष पूर्व घटित हई एक ऐसी घटना के विषय में संकेत करती है, जो शोधाथियों एवं इतिहास प्रेमियों के लिये नितान्त नवीन, विचारणीय एवं शोध का विषय है। अाज तक श्वेताम्बर आम्नाय की विभिन्न प्राचार्य परम्परागों की जितनी भी पट्टावलियां प्रकाश में आई हैं, उनमें से किसी पट्टावली में विशाख नाम के प्राचार्य का नाम कहीं पर भी दृष्टिगोचर नहीं होता। विशाखगणि की कोई स्वतन्त्र रचना भी जैन वांगमय में आज कही उपलब्ध नहीं होती। हां, निशीथ की कतिपय हस्तलिखित प्रतियों में निम्नलिखित प्रशस्ति उपलब्ध होती है :-- दसण चरित्त जुत्तो, गुत्तो गुत्तीसु परि संझणहिए । नामेण विमागणी, महत्तरो णाणमंजुसी ।। तस्स लिहियं निस्साहि, धम्मधुराधरण पवर पुज्जस्स ।। अर्थात् जो धर्म रूपी महान रथ को धूरी को धारण करने में परम प्रवीण सर्वथा समर्थ अथवा पूर्णतः कुशल, ज्ञान दर्शन चारित्र से मंयुक्त, तीन प्रकार की गुप्तियों से गुप्त, ज्ञान मंजुषा अर्थात् ज्ञान के अक्षय भण्डार तथा महत्तर की उपाधि से विभूपित हैं, उन परम पूज्य श्री विशाखगरणी नामक प्राचार्य की निश्रा में इस निशीथ सूत्र को लिखा गया है । यद्यपि प्रशस्तिकार ने विशाखगणि महत्तर की निश्रा में निशीथ के लेखन का ममय नहीं दिया है तथापि पुस्तक लेखन, लिपिकर्ता द्वारा आलेखन की समाप्ति पर प्रणस्तिलेखन आदि तथ्यों के परिप्रेक्ष्य में 'तित्थोगाली पइन्नय' द्वारा किये गये, वीर नि० सं० २००० में विशाख मुनि के स्वर्गस्थ होने के उल्लेख के सम्बन्ध में विचार For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.002073
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2000
Total Pages934
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Parampara
File Size16 MB
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