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[ जैन धर्म का मौलिक इतिहास-भाग ३ सुधन्वा की राज सभा में घटित हई उपरोक्त घटना से जैन संघ को कोई बहुत बड़ा आघात पहँचा हो, अथवा इसका जैन धर्म के प्रचार-प्रसार के प्रतिकूल प्रभाव पड़ा हो, ऐसी बात नहीं है क्योंकि कुमारिल्ल भट्ट के समकालीन और उत्तरवर्ती काल में कर्णाटक प्रदेश जैन धर्म का, जैन धर्म के दिगम्बर, यापनीय, श्वेताम्बर, कूर्चक आदि संघों का एक सुदृढ़ गढ़ रहा । इस बात की साक्षी उस काल के शिलालेख, मठ, मन्दिर, निसद्याएं और श्रमण-श्रमणियों के विहार आदि स्पष्ट रूप से दे रहे हैं। यही नहीं, अपितु जैन धर्म को कर्णाटक के राजाओं का भी पूर्ण-रूपेण प्रश्रय और आश्रय उस काल में बराबर प्राप्त रहा।
__ राजवंशों द्वारा कुमारिल्ल के उत्तरवर्ती काल में भी जैन धर्म के प्रचार एवं प्रसार के लिये जो सेवाएँ की गईं उनकी साक्षी भी सैकड़ों शिलालेखों में आज भी हमें देखने और पढ़ने को मिलती है। इन सब तथ्यों के परिप्रेक्ष्य में विचार करने पर यही प्रकट होता है कि कुमारिल्ल भट्ट की दिग्विजय यात्रा का सम्भवतः किसी क्षेत्र विशेष में अल्पकालिक ही प्रभाव हुआ होगा। एकांतद रमैया, बसवा (विश्वेश्वर)
और चैन्न बसवा के समय के शैव तथा लिंगायत साहित्य के उल्लेखों से यह स्पष्टतः सिद्ध होता है कि लिंगायत सम्प्रदाय और रामानुज सम्प्रदाय के अभ्युदय से पूर्व जैन धर्म कर्णाटक प्रदेश का बहुजन सम्मत और लोकप्रिय धर्म था। इसके अनुयायियों की संख्या भी अपेक्षाकृत सर्वाधिक थी।
इतिहासज्ञों का यह अभिमत है कि जैनधर्म के प्रचार-प्रसार और उसकी अभिवृद्धि को रोकने में कुमारिल्ल भट्ट का बहुत बड़ा हाथ रहा। इसलिये यहां कुमारिल्ल भट्ट का संक्षेप में परिचय दिया जाना संगत है।
कुमारिल्ल भट्ट की जन्मभूमि के सम्बन्ध में विद्वानों में बड़ा मत वैभिन्य है। तिब्बत के यशस्वी इतिहासवेत्ता तारानाथ ने कुमारिल्ल भट्ट को दक्षिण भारत के चूड़ामणि राज्यान्तर्गत त्रिमलय नामक स्थान का निवासी बताया है। इसके विपरीत प्रानन्द गिरी ने शंकर दिग्विजय में इन्हें उद्गदेश (उत्तर भारत) निवासी बताते हुए लिखा है कि इन्होंने उद्गदेश से आकर दृष्ट मतावलम्बी जैनों तथा बौद्धों को परास्त किया । उनका वह उल्लेख इस प्रकार है :--
"भट्टाचार्यों द्विजवरः कश्चित्, उद्ग देशात् समागत्य दुष्ट मतावलंबिनो बौद्धान् जैनान् असंख्यातान् निजित्य निर्भयो वर्तते।"
___ (शंकर विजय, पृष्ठ १८०) उद्गदेश प्राय: पंजाब और काश्मीर को ही समझा जाता है इस पर से यह ध्वनि निकलती है कि कुमारिल्ल भट्ट उत्तर भारत के निवासी थे।
___ कुमारिल्ल भट्ट से तीन सौ ढाई सौ वर्ष पश्चात् हुए भीमांसक सालिकनाथ ने कुमारिल्ल भट्ट का नामोल्लेख 'वात्तिक कार मिश्र' के रूप में किया है। मिश्र शब्द प्रायः उत्तर भारत के ब्राह्मणों से ही सम्बन्धित है।
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