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[ जैन धर्म का मौलिक इतिहास-भाग ३
पूर्णतः सफल रही। घोर संघर्ष के पश्चात् चालुक्य सेना के पैर उखड़ गये और वह बादामी की रक्षा के लिये बादामी की ओर लौट पड़ा। परमेश्वर वर्मन की वह सेना जो बादामी पर आक्रमण करने जा रही थी, वह भी पराजित चालुक्य सेना को स्वदेश लौटते देख कांची की ओर मुड़ गई। पृथक्-पृथक् टुकड़ियों में बादामी की ओर लौटती हई चालुक्य सेना के कई दलों को पल्लव सेना ने लूटा और वह लूट में प्राप्त हुई विपुल सामग्री लिये कांची लौट गई। परमेश्वर वर्मन ई. सन ६८० तक कांची राज्य पर शासन करता रहा ।
इस युद्ध के पश्चात् पल्लवों और चालुक्यों का संघर्ष शान्त हो गया । विक्रमादित्य के पश्चात ई. सन ६८१ में उसका पुत्र विनयादित्य बादामी के राजसिंहासन पर बैठा । इसने उत्तर भारत पर आक्रमण किया। इसके पुत्र विजयादित्य ने इस युद्ध में विजय के साथ विपुल कीति अजित की। विनयादित्य का शासनकाल ई. सन् ६८१ से ६६६ तक रहा।
ई. सन् ६६६ में इसका पुत्र विजयादित्य बादामी के चालुक्य राजसिंहासन पर पासीन हुआ। इसने ई. सन् ७३३ पर्यन्त ३७ वर्ष तक सुचारू रूप से शासन किया। इसका शासन काल राज्य और प्रजा-उभय पक्ष के लिए शान्ति और समृद्धि का सुखद काल रहा । इस ३७ वर्षों की अवधि में मन्दिरों के निर्माण के अनेक कार्य हुए।
दूसरी ओर कांची में परमेश्वर वर्मन के पश्चात् ई. सन् ६८० में नरसिंह वर्मन् (द्वितीय) राज सिंह कांची का राजा बना। यह बादामी के चालुक्य राज विनयादित्य और उनके पुत्र विजयादित्य का समकालीन था। इसने ४० वर्ष तक शासन किया। इसके शासनकाल में भी चारों ओर शान्ति और समृद्धि का साम्राज्य रहा । इसके शासनकाल में सामुद्रिक व्यापार में उल्लेखनीय अभिवृद्धि हुई ।
अभिनव साहित्य के साथ-साथ अतीव सुन्दर एवं विशाल मन्दिरों के निर्माण हुए । इसने अपना राजदूत चीन सम्राट के दरबार में भेजा।
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