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________________ वीर सम्वत् १००० से उत्तरवर्ती प्राचार्य ] [ ५४३ विक्रम की अपने कोशबल और सैन्यशक्ति से बड़ी सहायता की। गंगराज भ विक्रम की सहायता से विक्रम ने कड़े संघर्ष के पश्चात् नरसिंह वर्मन को बादामी से खदेड़ दिया। बादामी के राजसिंहासन पर पुनः अधिकार करते ही विक्रम ने विद्रोही सामन्तों और बादामी साम्राज्य को आघात पहुंचाने वाले अपने भाइयों को युद्ध में परास्त कर ई० सन् ६५४-६५५ में बादामी में चालुक्य राज्य की पुन: प्रतिष्ठा की। इसने अपने भाई जयसिंह को जिसने कि संकट की घड़ियों में विक्रम का सदा साथ दिया था, दक्षिणी गुजरात का अपना प्रतिनिधि प्रशासक नियुक्त कर उसे पुरस्कृत किया। उधर नरसिंह वर्मन ने कांची में लौट कर अपने मित्र मानवर्मा की सहायता के लिये दो नौ सैनिक बेड़े लंका भेजे । नरसिंह वर्मा द्वारा दी गई इस सैनिक सहायता से मानवर्मा ने अपने शत्रु राजा को युद्ध में पराजित एवं मार कर अनुराधापुर के राजसिंहासन पर अधिकार कर लिया। dansamme नरसिंह वर्मन की नौ सेना बडी शक्तिशाली थी। कांची के पल्लव राजवंश में इसे महान निर्माता राजा माना गया है। नरसिंह वर्मन की ई० सन ६६८ के लगभग मृत्यु हो गई। इसके पश्चात् इसका पुत्र महेन्द्र वर्मन (द्वितीय) कांची के सिंहासन पर बैठा । बादामी के चालुक्य विक्रमादित्य ने कांची पर आक्रमण किया। इस युद्ध में गंगराज भूविक्रम भी इसके साथ था। गंग विक्रम ने महेन्द्र वर्मन (द्वितीय) को इस युद्ध में परास्त किया। महेन्द्र वर्मन काकांची पर स्वल्प काल तक ही शासन रहा । उसके पश्चात् उसका पुत्र परमेश्वर वर्मन कांची के राजसिंहासन पर बैठा। इसके शासन. काल में भी बादामी के चालुक्यराज विक्रमादित्य ने आक्रमण किया। इस युद्ध में भी गंगरान भूविक्रम चालुक्यराज विक्रमादित्य प्रथम के साथ था। इस युद्ध में भूविक्रम. ने परमेश्वर वर्मन को पराजित कर उसे बन्दी बना लिया। परमेश्वर वर्मन ने अपने मुकुट का वहमूल्य रत्न और उग्रोदय मणिजटित हार देकर कारागार में मुक्ति पायी । इस युद्ध में परमेश्वर वर्मन की पराजय का एक और भी कारण था, वह यह कि पाण्ड्यराज अरिकेसरी वर्मन अपनी सेना के साथ विक्रमादित्य (प्रथम) मे जा मिला। परमेश्वर वर्मन ने इस पराजय के उपरान्त भी बड़े साहस से काम लेकर पुनः अपनी सेना को सुगठित किया। उसने विक्रमादित्य का ध्यान बटाने के लिए अपनी सेना के एक भाग को बादामी पर आक्रमण करने के लिए भेजा और स्वयं एक शक्तिशाली सेना लेकर उडइयर से उत्तर पश्चिम दिग्विभाग में स्थित पेरुवल्लनल्लर नामक स्थान पर चालुक्य सेनाओं के समक्ष प्रा डटा। उसकी यह रणनीति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002073
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2000
Total Pages934
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Parampara
File Size16 MB
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