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[ जैन धर्म का मौलिक इतिहास - भाग ३
के सामन्त बाणवंशी राजाओं ने जिनका कि रायल सीमा पर शासन था, बड़ा प्रतिरोध किया । उस भीषण संघर्ष में बाण राज्य पूर्णतः नष्ट हो गया, किन्तु इसके परिणामस्वरूप पुलकेशिन (द्वितीय) की सेना को बड़ी भारी क्षति उठानी पड़ी । वह अपनी सेना के साथ पल्लव राज्य की सीमा में आगे बढ़ां । नरसिंह वर्मन ( प्रथम ) महामल्ल ने लंका के राजकुमार मानवर्मा की सहायता से कांचीपुरम् से २० मील पूर्व में स्थित मणिमंगला नामक स्थान पर पुलकेशिन (द्वितीय) की सेना पर आक्रमण कर भीषण युद्ध के पश्चात् उसे परास्त कर दिया। इस युद्ध के पश्चात् तो पुलकेशिन की नरसिंह वर्मन के साथ हुए छोटे-बड़े सभी युद्धों में पराजय पर पराजय होती ही रही और उसे अपनी राजधानी बादामी में लौटने के लिये बाध्य होना पड़ा ।
इस विजय से पल्लवराज नरसिंह वर्मन ( प्रथम ) बड़ा उत्साहित हुआ । उसने अपनी विशाल एवं शक्तिशालिनी सेना से बादामी पर ग्रामरण कर उस पर अधिकार कर लिया । इस युद्ध में पुलकेशिन ( प्रथम ) की युद्ध भूमि में मृत्यु हो गई ।
नरसिंह वर्मन द्वारा बादामी पर अधिकार किये जाने की इस घटना की एक ऐतिहासिक घटना के रूप में पुष्टि नरसिंह वर्मन की " वातापिकोण्डा " ग्रर्थात्वातापी का विजेता - इस उपाधि से होती है । वातापि वस्तुत: बादामी का ही पुरातन नाम है । इसके अतिरिक्त मल्लिकार्जुन मन्दिर के पीछे की चट्टान पर कित नरसिंह वर्मन के शासन के तेरहवें वर्ष के शिलालेख से भी इस घटना की पुष्टि होती है ।
पुलकेशिन द्वितीय की बादामी के युद्ध में पराजय एवं मृत्यु में विशाल चालुक्य साम्राज्य एक बार तो बुरी तरह बिखर गया। उसके अधीनस्थ राजाओं और चालुक्य साम्राज्य के प्रतिनिधियों के रूप में प्रशासक पद पर नियुक्त पुलकेशिन (द्वितीय) के पुत्रों ने भी अपने आपको अपने-अपने अधीनस्थ प्रदेशों का स्वतन्त्र राजा घोषित कर दिया ।
बादामी के चालुक्य राज्य पर आयी हुई इस घोर संकट की घड़ियों में भी पुलकेशिन (द्वितीय) के एक पुत्र ने, जिसने कि आगे चलकर विक्रमादित्य के विरुद् को धारण किया, बड़े ही साहस से काम लिया । चालुक्य राज्य के इस श्रापातकाल में गंगराज भूविक्रम' अपरनाम श्रीवल्लभ - भूरिविक्रम ने, पुलकेशिन द्वितीय के इस
, इसका शासनकाल ई. सन् ६७० तक था। देखिये प्रस्तुत ग्रन्थ का पृष्ठ २६६, डा. के. एस. नीलकण्ठ शास्त्री ने अपने "दक्षिण भारत का इतिहास" नामक ग्रन्थ में (पृष्ठ १२७ ) गंग ग्रविनीत को विक्रम का नाना बताया है किन्तु गंग प्रविनीत का शासन काल ई० सन् ८२५ ४७८ तक है। देखिये प्रस्तुत ग्रन्थ का पृष्ठ २६५ ।
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