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________________ ३५वें से ३८वें पट्टधर तथा युगप्रधानाचार्य पुष्यमित्र के समय की राजनैतिक घटनाएँ ईसा की सातवीं शताब्दी में दक्षिण में कांची के पल्लवों और चालुक्यों में संघर्ष चलता रहा। इस लम्बे संघर्ष का सूत्रपात उस समय हुआ, जब पुलकेशिन (द्वितीय) ने ईसा की ७वीं शताब्दी के प्रथम चरण में पल्लवराज महेन्द्र वर्मन पर अाक्रमण किया । पुलकेशिन अपनी शक्तिशाली सेना के साथ पल्लव राज्य की सीमा में दूर तक बढ़ता हुआ जब कांची से उत्तर में लगभग १५ मील की दूरी पर ही रह गया तब पल्लव सेना के प्रतिरोध पर पुल्लकर में दोनों सेनाओं के बीच भीषण युद्ध हुआ । पल्लव राज्य का उत्तरी भाग पुलकेशिन को देकर महेन्द्र वर्मन ने उसके साथ सन्धि की और इस प्रकार उसने अपनी राजधानी की शत्रु से रक्षा की। पल्लवों और चालूक्यों के बीच संघर्ष का सूत्र-पात इसी घटना से हुआ। ई० सन् ६२१ में राजधानी में लौटते ही उस समय के अपने सामन्त विष्णूवर्द्धन को अपने प्रतिनिधि के रूप में आन्ध्र का शासक बना कर वहां विरोधी शक्तियों को नष्ट करने और अपने राज्य को सुदृढ़ एवं विशाल बनाने के लिये भेजा। विष्णूवर्द्धन' ने १० वर्ष तक आन्ध्र का शासन करते हए वहां पुलकेशिन के राज्य की सीमा में भी उल्लेखनीय अभिवृद्धि के साथ-साथ राज्य को निष्कण्टक बना दिया । प्रान्ध्र में अपने राज्य की स्थिति के सुदृढ़ हो जाने पर पुलकेशिन द्वितीय ने ई० सन् ६३१ के पश्चात् अपने भाई की स्वीकृति से एक राजवंश की स्थापना की, जिसकी तेलुग देश पर ५०० वर्ष तक सत्ता रही। पुलकेशिन बड़ा शक्तिशाली राजा था। इसने ई० सन् ६२५-६२६ में अपना राजदूत ईरान के शाह खुसरो (द्वितीय) के यहां और ईरान के शाह ने पुलकेशिन की राजधानी बादामी में भेजा। अपनी सफलताओं से प्रोत्साहित हो पुलकेशिन द्वितीय ने पल्लवराज महेन्द्रवर्मन के पुत्र नरसिंह वर्मन (ई० सन् ६३०-६६८) के शासन काल में पल्लव राज्य पर पुनः आक्रमण किया । पुलकेशिन (द्वितीय) के इस प्राक्रमण का पल्लवों ' यह विष्णुवर्द्धन इतिहास प्रसिद्ध होयसल महाराजा विष्णुवर्द्धन से भिन्न ही पुलकेशिन (द्वितीय) का सामन्त · सेनापति था। होयसल महाराजा विष्णुवर्द्धन का शासन काल ई० सन् १११० से ११५२ था। २ दक्षिण भारत का इतिहास, (टा. के. ए. नीलकण्ठ शास्त्री) पृष्ट १:६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002073
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2000
Total Pages934
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Parampara
File Size16 MB
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