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________________ यापनीय परम्परा के प्राचार्य अपराजित सूरि (विजयाचार्य) विक्रम की आठवीं शताब्दी में यापनीय परम्परा के भी एक बहुत बड़े विद्वान् प्राचार्य हुए हैं जिनका नाम अपराजित सूरि है । यापनीय परम्परा के सम्बन्ध में प्रस्तुत ग्रन्थ के छठे प्रकरण में विस्तारपूर्वक परिचय दिया गया है। उसमें अपराजित सूरि का भी यत्किचित परिचय दिया गया है। जैन इतिहास की दृष्टि से यापनीय प्राचार्य अपराजित सूरि का स्थान बहुत ऊंचा और बड़ा ही महत्वपूर्ण है। इन्होंने बहुत सम्भव है कि दशवैकालिक सूत्र के समान ही अनेक सूत्रों पर टीकामों की रचनाएं की हों। किन्तु इनके द्वारा लिखी गई पागमों की टीकाओं में से केवल दशवैकालिक टीका के कतिपय उद्धरण ही आज जैन वांग्मय में उपलब्ध होते हैं। मूलाराधना की टीका में इनके द्वारा रचित दशवकालिक टीका के अनेक.. उद्धरण उपलब्ध होते हैं। इनके द्वारा लिखित वर्तमान में केवल एक ही टीका ग्रन्थ उपलब्ध होता है, वह है पाराधना की विजयोदया टीका। आराधना की विजयोदया टीका में ही दशवकालिक सूत्र की विजयोदया टीका का उसके अनेक उद्धरणों के साथ में उल्लेख उपलब्ध होता है । इन अपराजित सूरि का अपर नाम विजयाचार्य था इसलिये अपने इस अपर नाम पर ही अपनी उन दो महत्वपूर्ण टीकाओं का उन्होंने नामकरण किया है। जैन इतिहास में अपराजित सूरि का और इनके द्वारा निर्मित उपरिलिखित दोनों टीकात्रों का इस लिये बड़ा ऐतिहासिक महत्व है कि श्वेताम्बर और दिगम्बर इन दो परम्पराओं के रूप में श्रमण भगवान् महावीर के धर्मसंघ के विभक्त हो जाने पर यापनीय परम्परा के इन आचार्य ने इन दोनों संघों को एकसूत्र में पुन: प्राबद्ध करने की दृष्टि से सम्भवतः पूरा-पूरा प्रयास किया। __ यापनीय परम्परा के प्राचार्य उन सभी आगमों को प्रामाणिक मानते थे जिन्हें कि श्वेताम्बर परम्परा प्रामाणिक मानती है । इस सर्वाधिक महत्वपूर्ण तथ्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002073
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2000
Total Pages934
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Parampara
File Size16 MB
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