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________________ भगवान महावीर के ३४ एवं ३५वें पट्टधर क्रमशः हरिषेण व जयसेरण के प्राचार्यकाल के समय के प्रमुख ग्रन्थकार जिनदास गरिण महत्तर : जैन जगत् के चूर्णिकारों में जिनदास गणि महत्तर का मूर्धन्य स्थान है। इन्होंने नन्दिचूरिण, निशीथ सूत्र चूरिण और आवश्यक चरिण नामक बड़े ही महत्वपूर्ण ग्रन्थों की रचनाएं की। इन्होंने अपने परिचय के साथ निशीथ चूरिण की रचना का समय अपनी इन निम्नलिखित गाथाओं में दिया है : संकरजड मउड विभूसणस्स तन्नामसरिस णामस्स । तस्स सुतेणेसकता विसेस चुण्णी मिसीहस्स ।। तत्थो चेव विधि पागडो फुड पदत्थो रइतो परिभासाए साहूण अणुगहट्ठाए । ति चउपण अट्ठम वग्गा ति पण ति तिग अक्खरावते तेसि । पढम ततिएहिंति दु सर जुएहिं रणामकयं जस्स ।। गुरुदिण्णं च गणित्तं महत्तरत्तं च तस्स मुद्धेहिं । तेण कएसा चुण्णी विसेसनामा निसीहस्स ।। नन्दि सूत्र की चूणि के अन्त में दी हुई प्रशस्ति में जिनदास गणि महत्तर ने उल्लेख किया है कि शक सम्वत् ५९८ तदनुसार विक्रम सम्वत् ७३३ तदनुसार वीर निर्वाण सम्वत् १२०३ में नन्दि सूत्र चूर्णि पूर्ण की। महत्तर जिनदासगरिण द्वारा रचित चूणियां श्रमण-श्रमणी वर्ग एवं साधक वर्ग के लिए अपने शास्त्रीय ज्ञान का अभिवर्द्धन करने में परम सहायक होने के साथ साथ ऐतिहासिक दृष्टि से भी बड़ी महत्वपूर्ण हैं। आवश्यक रिण को यदि जैन इतिहास की अक्षय निधि कहा जाय तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002073
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2000
Total Pages934
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Parampara
File Size16 MB
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