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वीर सम्वत् १००० से उत्तरवर्ती आचार्य ]
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अकलंक नाम के और भी अनेक विद्वान् हुए हैं। उनके नाम अनुमानित काल के अनुसार इस प्रकार हैं - ( १ ) अकलंक पण्डित - ई० १०६८, (२) प्रकलंक त्रैविद्य - ई० ११६३ में स्वर्गस्थ हुए, (३) प्रकलंकचन्द्र - ई० १२००, (४ ) अकलंकदेव ई० १२५६ में स्वर्गस्थ हुए, (५) अकलंक मुनि नन्दिसंघ, बलात्कारगण के जयकीर्ति के शिष्य, (६) अकलंकदेव मूलसंघ - ई० १५५० - १५७५, (७) भट्टारक अकलंकदेव कर्णाटक शब्दानुशासन के रचनाकार - ई० १५८६ से १६१५ तक । ये ६ भाषाओं में कविता करने की अद्भुत क्षमता रखते थे । इन्होंने रायबहादुर नरसिंहाचार्य के अभिमतानुसार अनेक राजसभात्रों में हुए शास्त्रार्थों में विजयी होकर जिनशासन की महती प्रभावना की, (८) अकलंक मुनिप देशीगरण, पुस्तकगच्छ के कार्कल मठ के भट्टारक - ई० १८१३ में स्वर्गस्थ हुए, (६) अकलंकदेव -अनुपलब्ध प्रतिष्ठाकल्प के रचयिता । इनका समय ईसा की १८वीं शताब्दी का पूर्वार्द्ध अनुमानित किया जाता है, (१०) अकलंक – परमागमसार नामक कन्नड़ ग्रन्थ के रचनाकार । समय अज्ञात, (११) अकलंक -- चैत्यवन्दन, प्रतिक्रमणसूत्र, साधु श्राद्ध प्रतिक्रमण एवं पदपर्याय मंजरी आदि के कर्त्ता । समय अनिर्णीत । '
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१ विशेष जानकारी के लिए देखिये, जैन धर्म का प्राचीन इतिहास, भाग २, परमानन्द शास्त्री
लिखित पृष्ठ १५४ १५५
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