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________________ वीर सम्वत् १००० से उत्तरवर्ती प्राचार्य ] [ ५३५ सरोवर के घाट पर उसी समय पाया हा एक रजक (धोबी) भी किसी भयंकर आपत्ति की आशंका से निकलंक का पीछा करता हुआ भागने लगा। बौद्धराज के अश्वारोही निकलंक और धोबी के पदचिन्हों का अनुसरण करते हुए उनके पीछे तीव्र गति से घोड़े दौड़ाते हुए उस विकट अटवी की ओर बढ़े। कुछ ही क्षणों में बौद्ध सेना के अश्वारोही उन दोनों भागने वालों के पास जा पहुंचे और उन्होंने अपनी तलवार की तीखी धार के एक ही प्रहार से उन दोनों के सिर काट दिये। उन्हें मरा हुआ जानकर बौद्ध सैनिक लौट गये । बौद्ध सैनिकों के लौट जाने पर अकलंक जलाशय से बाहर निकले और कलिंग के रत्नसंचयपुर नगर में पहुंचे। वहां उन्होंने राजा हिमशीतल की राजसभा में बौद्धाचार्य संघश्री के साथ शास्त्रार्थ किया । शास्त्रार्थ प्रारम्भ करते समय संघश्री ने यह शर्त रखी थी कि वह यवनिका (पर्दे) के पीछे बैठ कर शास्त्रार्थ करेगा। शास्त्रार्थ बड़े लम्बे समय तक चलता रहा और ६ महीने चलते रहने पर भी जव जय-पराजय का निर्णय नहीं हो सका तो अकलंक ने इसमें कुछ रहाय की आशंका से चक्रेश्वरी देवी का स्मरण किया। ___ चक्रेश्वरी देवी ने अकलंक को बताया :-"बौद्धाचार्य शास्त्रार्थ नहीं कर रहा है बल्कि उनको आराध्या देवी तारा पर्दे के पीछे रखे घट में बैठी हई शास्त्रार्थ कर रही है । कल तुम उसे आज के शास्त्रार्थ में उसके द्वारा कही गई अन्तिम बात को दोहराने को कहा। देवी एक बार कही हई बात को नहीं दोहराती। अतः पह मौन रहेगी। तुम उसी समय यवनिका के अन्दर प्रवेश कर पाणि-प्रहार से उस घट को फोड़ देना । बौद्धाचार्य घट में बैठी हुई तारादेवी के बल पर ही अभी तक शास्त्रार्थ में पराजित नहीं हो सका है । घट के फोड़ दिये जाने पर वह पूर्णतः शक्तिविहीन हो जायगा और शास्त्रार्थ में तुम्हारे समक्ष क्षण भर भी टिक नहीं सकेगा।" दूसरे दिन हिमशीतल की राजसभा में शास्त्रार्थ को प्रारम्भ करते हुए अकलंक ने कल कही हुई बात दोहराने को कहा। प्रतिपक्ष की ओर से प्रकलंक के कथन का कोई उत्तर नहीं मिला। प्रतिपक्षी को मौन देख कर अकलंक ने तत्काल यवनिका का पटाक्षेप करते हुए उसके अन्दर प्रवेश किया। वहां घट को देख उन्होंने पाद-प्रहार से उस घड़े को फोड़ दिया । अकलंक द्वारा पुनः पुनः प्रश्न किये जाने पर भी वौद्धाचार्य संघश्री की जिह्वा तो दूर प्रोष्ठ तक नहीं हिले । वह अवाक् बना अकलंक की ओर देखता ही रहा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002073
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2000
Total Pages934
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Parampara
File Size16 MB
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