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[ जैन धर्म का मौलिक इतिहास भाग ३
सकुशल पृथ्वी पर उतर गये और उन्होंने दबे पांवों बड़ी तीव्र गति से प्राण रक्षार्थ पलायन प्रारम्भ किया।
. प्रातःकाल होने पर उस बौद्ध विद्यापीठ के नियमानुसार उन दोनों भाइयों को प्राणदण्ड दिलाने हेतु राजा के समक्ष उपस्थित करने के लिये जन उस कक्ष के द्वार खोले गये, जिसमें कि दोनों भाइयों को बन्दी बनाकर रक्खा गया था, तो उस कक्ष में उन्हें न पा उनकी खोज में चारों ओर राजा की आज्ञा से 'अश्वारोही सैनिक' दौड़ाये गये।
विकट वनी को पार कर जब वे दोनों भाई एक सरोवर के पास पहुंचे तो निकलंक ने देखा कि अश्वारोही उनका पीछा करते हुए भागे आ रहे हैं। उसने अकलंक से कहा--"भैया ! आज जिनशासन को आप जैसे एकसन्धि सुतीक्ष्ण बुद्धि विद्वान् की आवश्यकता है। जिन शासन के लिये अनमोल--अमूल्य अपने जीवन को आप येन-केन-प्रकारेण बचाइये। देखिये यह विशाल सरोवर तीन ओर से पहाड़ियों और विशाल वृक्षों की पंक्तियों से घिरा हुआ है। लम्बी झीलों के समान इस सरोवर की जलराशियां पहाड़ों के बीच की टेढ़ी-मेढ़ी अति गहरी खाइयों तक फैली हुई हैं । आप सुयोधन के समान श्वास निरोधपूर्वक जलस्तम्भन की यौगिकी क्रिया में निष्णात हैं । इस विशाल सरोवर में आपको शत्रुओं का टिड्डी दल भी प्रा जाय तो नहीं खोज सकेगा । मैं आपसे हाथ जोड़ कर प्रार्थना करता हूं कि आप सभी प्रकार के मोह ममत्व का एक ही झटके में परित्याग कर इस सरोवर की अगाध जल राशि में छुप जाइये। जिनेन्द्र प्रभु के विश्वकल्याणकारी धर्म शासन के हित के लिये आप शीघ्रतापूर्वक जलराशि में प्रविष्ट हो जाइये । शत्रुओं के घोड़ों की टापों से उड़ती हुई धूलि के बादल बड़ी तीव्र गति से हमारे पास उड़े पा रहे हैं। अभी शवों की कर दृष्टि हम पर नहीं पड़ी है। आपको जिनेन्द्र प्रभु की सौगन्ध है, जिनशासन की शपथ है । शीघ्रता कीजिये और वृक्षों की, लता-गुल्मों के झुरमुटों की प्रोट में दबे पांवों भागते हए द्रतगति से जाइये और इस अगाध विस्तीर्ण जलराशि में शत्रुओं की प्रांखों से ओझल हो जाइये ।"
__जिनेन्द्र प्रभु की एवं जिनशासन की शपथ के पश्चात् अकलंक के समक्ष और कोई रास्ता नहीं था। एक बार में ही क्षणभर में अपने अन्तर्हद से पीयपोपम 'नेहसागर दोनों डगों से अपने स्नेह केन्द्र लघु सहोदर पर उडेलता हुआ अकलंक झुरमुटों की प्रोट में द्रुततर गति से बढ़ता हुअा दो पर्वतों के बीच की टेढ़ी-मेढ़ी जल राशि में समा गया।
यह देखकर पूर्णतः आश्वस्त हो निकलंक भी बड़ी तेज गति से विपिन की ओर गुल्म-लता कुंजों की प्रोट लेता हुआ भागा। उसे भागता देख वस्त्र प्रक्षालनार्थ
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