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________________ प्राचार्य कलंक आचार्य अकलंक दिगम्बर परम्परा के एक महान् प्रभावक प्राचार्य हुए हैं । इनका समय विद्वानों ने ई० सन् ७२० से ७८० तक का निर्धारित किया है । इन्होंने अनेक ग्रन्थों की रचनाएं कीं। उनमें मुख्य हैं --- ( १ ) तत्वार्थ वार्तिक सभाष्य, ( २ ) अष्टशती ( समन्तभद्र कृत प्राप्त मीमांसा - देवागमस्तोत्र की वृत्ति), (३) लाघवस्तव सवृत्ति, ( ४ ) न्याय विनिश्चय सवृत्ति, (५) सिद्धि विनिश्चय, (६) प्रमाण मीमांसा, ( ७ ) प्रमेय मीमांसा, (८) नय मीमांसा, ( 2 ) निक्षेप मीमांसा, तथा (१०) प्रमाण संग्रह । आचार्य कलंक का जो जीवन परिचय उपलब्ध होता है उसमें इनके पिता का नाम पुरुषोत्तम बताया गया है। पुरुषोत्तम मान्य खेट के राष्ट्रकूट वंशीय राजा शुभतुंग के मंत्री थे । अकलंक के छोटे भाई का नाम निकलंक था । ये दोनों भाई कुशाग्र बुद्धि थे । एक दिन ये दोनों भाई अपने माता-पिता के साथ प्राचार्य रविगुप्त के दर्शनार्थ गये । माता-पिता के साथ दोनों बालकों ने भी अपने गुरु से ब्रह्मचर्य व्रत अङ्गीकार किया । जब इन दोनों भाइयों ने किशोरवय पार की, उस समय माता-पिता ने इन दोनों भाइयों का विवाह करने का निश्चय किया किन्तु अकलंक और निकलंक ने माता-पिता के आग्रह को अस्वीकार करते हुए स्पष्ट शब्दों में कह दिया कि उन्होंने बाल्यावस्था में ही ब्रह्मचर्य व्रत गुरुदेव से ग्रहरण कर लिया था । अतः अब वे जीवन पर्यन्त अखण्ड ब्रह्मचारी ही रहेंगे । इन दोनों भाइयों ने अपने संकल्प पर दृढ़ रहते हुए विद्याध्ययन किया और अकलंक की बुद्धि इतनी तीव्र थी कि कठिन से कठिन पाठ भी उन्हें एक बार सुनने मात्र से ही कंठस्थ हो जाता था । वही पाठ निकलंक को दो बार सुनने से कंठाग्र हो जाता था । इस प्रकार के कुशाग्र बुद्धि होने के कारण उन दोनों भाइयों ने स्वल्प समय में ही अनेक विद्यानों और शास्त्रों में पारंगतता प्राप्त कर ली । उन दिनों बौद्ध न्याय की चारों ओर घूम थी । बौद्धों की न्याय और तर्कशास्त्र पद्धति का अध्ययन करने की उन दोनों भाइयों के मन में तीव्र उत्कंठा उत्पन्न हुई और वे बौद्ध न्याय का अध्ययन करने के लिये बौद्ध मठ में गये । उन्होंने अपना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002073
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2000
Total Pages934
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Parampara
File Size16 MB
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