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________________ वीर सम्वत् १००० से उत्तरवर्ती प्राचार्य ] [ ५२७ सं ६७५ ( वीर नि. सं. ११४५ ) में भिन्नमाल के राजसिंहासन पर आसीन हुआ । वि. सं. ७०५ ( वीर नि. सं. १९७५) में रामदास का पुत्र सामन्त भिन्नमाल राज्य का स्वामी बना । राजा सामंत के जयंत और विजयंत नामक दो पुत्र हुए । सामंतराज ने अपने विशाल राज्य को भिन्नमाल और लोहियाण इन दो भागों में विभक्त कर अपने दोनों पुत्रों में बांट दिया । वि. सं. ७१६ ( वीर नि. सं. १९८६ ) में जयन्त को भिन्नमाल के राजसिंहासन पर और विजयन्त को लोहियारण के राजसिंहासन पर भषिक्त किया गया । किन्तु अपने पिता की मृत्यु के कुछ समय पश्चात् ही जयन्त ने बलात् अपने भ्राता विजयन्त के लोहियारण राज्य को उससे छीनकर अपने भिन्नमाल राज्य में सम्मिलित कर लिया । विजयन्त लोहियाण से पलायन कर वेणा के तीर पर अवस्थित शंखेश्वर नामक ग्राम में अपने मामा रत्नादित्य के पुत्र व्रजसिंह के पास रहने लगा । उस समय शंखेश्वर में वृहद्गच्छीय प्राचार्य सर्वदेव सूरि का चातुर्मास था । विजयन्त प्रतिदिन ग्राचार्य श्री का उपदेश सुनने जाता और उनके उपदेशों से प्रबोध पा वह विक्रम सं. ७२३ ( वीर नि. सं १९९३) की कार्तिक शुक्ला १० गुरुवार के दिन समकित के साथ-साथ बारह व्रत अंगीकार कर जैन धर्म का अनुयायी बन गया । तदनन्तर रत्नादित्य ने अपने दोनों भानजों में सन्धि करवा कर विजयन्त को पुनः लोहियारण के राजसिंहासन पर आरूढ़ करवाया । लगभग १२ वर्षों तक विजयन्त लोहियाण की प्रजा पर न्याय नीतिपूर्वक शासन करता रहा । वि. सं. ७३५ ( वीर नि. सं. १२०५ ) में विजयन्त का देहावसान हो गया और उसका पुत्र जयमल लोहियारण के राजसिंहासन पर बैठा । छः वर्ष तक शासन करने के पश्चात् जयमल कालधर्म को प्राप्त हुआ । उसके कोई पुत्र नहीं था अतः उसका मंझला भाई जोगा वि. सं. ७४१ ( वीर निर्वारण सं. १२११ ) में लोहियारण का अधिपति वन गया। जोगराज के भी पुत्र नहीं हुआ । अतः वि. सं. ७४९ ( वीर नि. सं. १२१६ ) में उसके परलोकवासी होने पर उसका छोटा भाई जयवंत लोहियारण राज्य का स्वामी हुआ । । बना की जयवन्त के जयवन्त के बना और श्रीमल्ल नामक दो पुत्र हुए राज्यकाल में ही मृत्यु हो गई और श्रीमल्ल ने नागेन्द्र गच्छ ग्रहरण कर लो जो प्रागे चलकर सोम प्रभाचार्य के नाम से कारण जयवन्त की मृत्यु के पश्चात् उसका पौत्र ( बना का पुत्र) भाण वि. सं. ७६४ ( वीर नि. सं. १२३४ ) में लोहियारण के राज सिंहासन पर बैठा । श्रमरण धर्म की दीक्षा विख्यात हुआ । इसी उन्हीं दिनों भिन्नमाल के प्रति वृद्ध राजा जयन्त की मृत्यु हो गई । उसके कोई पुत्र नहीं था । अतः उत्तराधिकार के प्रश्न को लेकर उसके कुटम्बियों में कलह Jain Education International में For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002073
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2000
Total Pages934
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Parampara
File Size16 MB
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