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________________ ५२६ ] [ जैन धर्म का मौलिक इतिहास-भाग ३ प्राचार्य हरिभद्र सूरि के सत्ताकाल के सम्बन्ध में कुछ ही वर्षों पूर्व अनेक प्रकार की भ्रान्तियां थीं। देश के गण्यमान्य जैन विद्वानों ने समूचित शोध के पश्चात् इनका सत्ताकाल विक्रम सम्वत् ७५७ से ८२७ के बीच निर्णीत किया है। इन सब पर इसी ग्रन्थमाला के द्वितीय भाग तथा प्रस्तुत तृतीय भाग में भी विस्तारपूर्वक प्रकाश डाला जा चुका है।' 4 . madamenews कुलगुरुषों के सम्बन्ध में मर्यादा का निर्धारण बत्तीसवें (३२) युग प्रधानाचार्य पुष्यमित्र के प्राचार्य काल में घटित हुई कतिपय घटनाओं के पर्यालोचन से प्रकट होता है कि उस समय तक अपने आप को सुविहित परम्परा के नाम से अभिहित करने वाली अधिकांश श्रमण परम्पराओं पर भी चैत्यवासी परम्परा के शिथिलाचार का पर्याप्त प्रभाव पड़ चुका था। अमुक परिवार का मैं कुलगुरु हूं, परम्परा से अमुक श्रावक परिवार मेरा उपासक रहा है। इस विषय को लेकर समय-समय पर चौरासी गच्छों के प्राचार्यों में विवाद होने लगे। इस प्रकार के विवादों का एक स्पष्ट उल्लेख प्राचीन पत्रों में उपलब्ध होता है जो इस प्रकार है : विक्रम सं. २०२ (वीर नि. सं. ६७२) में भिन्नमाल के विशाल राज्य पर सोलंकी वंश का राजा अजितसिंह राज्य करता था। अनेक शताब्दियों तक भिन्नमाल पर इसी वंश का शासन रहा । वि. सं. ५०३ (वीर नि. सं. ९७३) में भिन्नमाल पर इसी वंश के राजा सिंह का राज्य था। राजा सिंह के कोई पुत्र नहीं हया अतः उसने प्रवन्ती निवासी मोहक नामक क्षत्रिय के सद्यप्रसूत पुत्र को अपना दत्तक पुत्र घोषित कर उसका लालन पालन एवं शिक्षण-दीक्षण किया। राजा सिंह ने अपने इस दत्तक पुत्र का नाम 'जइपारण' रखा । वि. सं. ५२७ (वीर नि. सं. ६६७) में राजा सिंह का देहावसान हो जाने पर 'जइआण' भिन्नमाल के राज सिंहासन पर आसीन हुआ। जइमाण के पश्चात् उसका पुत्र श्री कर्ण और श्री कर्ण के पश्चात् श्री कर्ण का पुत्र संमूल वि. सं. ६०५ (वीर नि. सं. १०७५) में भिन्नमाल के विशाल राज्य का स्वामी बना। राजा संमूल की मृत्यु के पश्चात् वि. सं. ६४५ (वीर नि. सं. १११५) में उसका पुत्र गोपाल भिन्नमाल के राज्य सिंहासन पर आसीन हुा । ३० वर्ष तक शासन करने के अनन्तर राजा गोपाल के पंचत्व को प्राप्त हो जाने पर उसका पुत्र रामदास वि. ' जैन धर्म का मौलिक इतिहास, भाग २, प्रथम संस्करण, पृष्ठ ७१२, भाग ३ हारिल सूरि का प्रकरण। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002073
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2000
Total Pages934
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Parampara
File Size16 MB
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