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[ जैन धर्म का मौलिक इतिहास --भाग ३
जो नगर दिख रहा है इसमें सूरपाल नाम का एक शरणागत प्रतिपाल राजा रहता । है। तुम उसके पास चले जाना। वह तुम्हें गुरु के पास पहुँचाने का प्रबन्ध कर
हंस और परमहंस दोनों ही शतयोधि थे। अतः शतयोधि हंस ने समीप आये बौद्ध सुभटों की उस बहुत बड़ी सैनिक टुकड़ी का एकाकी ही बड़े साहस के साथ सामना किया। पर अन्त में रोम-रोम में लगे बाणों से बिद्ध हंस निष्प्राण हो पृथ्वी पर गिर पड़ा।
परमहंस अपने ज्येष्ठ भ्राता की आज्ञानुसार सूरपाल राजा के पास पहुँच गया। बौद्धभटों की वह सैनिक टकड़ी भी उसका पीछा करते हुए राजा सूरपाल के पास पहुँच गई और परमहंस को उन्हें सौंपने के लिये बार-बार उस राजा से बलपूर्वक आग्रह करने लगे। राजा ने कहा :-"मेरी शरण में आये हुए प्रबोध से अबोध और अकिंचन से अकिंचन व्यक्ति को भी ले जाने की किसमें सामर्थ्य है ? तिस पर यह तो महान विद्वान् सकल कलानों का निष्णात न्यायनिष्ठ और धर्मनिष्ठ, महान् आत्मा प्रतीत होता है। मैं इसे किसी भी दशा में तुम्हें नहीं दे सकता।"
बौद्ध सैनिक टुकड़ी के नायक ने कहा :- "एक दूर देश से आये हुए व्यक्ति के लिये तुम अन्न, धन, जन, संकुल समृद्ध अपने राष्ट्र और राज्य से हाथ धोने के लिये क्यों उद्यत हो रहे हो ? हमारे बौद्ध नरेश को प्रकुपित कर देने से आपको कोई लाभ नहीं होने वाला है।"
राजा सूरपाल ने उत्तर दिया : -"मेरे पूर्व पुरुषों ने जो यह व्रत ग्रहण किया है कि प्राणों का विसर्जन भले ही कर दिया जाय किन्तु शरणागत को किसी भी दशा में नहीं त्यागा जाय, मैं तो उस व्रत का पालन प्राणपण से करूंगा। हां, मैं एक उपाय इसका बताता हूँ। आप लोगों के विद्यापीठ का कोई एक विद्वान् इस परमहंस के साथ शास्त्रार्थ करे। यदि यह वाद में पराजित हो जाय तो इसे तुम ले जा सकते हो और यदि यह वाद में तुम्हें पराजित कर दे तो तुम्हें क्षमायाचनापूर्वक तुरन्त लोट जाना होगा । इसे तुम नहीं ले जा सकोगे।"
बौद्धों के नायक ने कहा : - "आपका यह प्रस्ताव हमें स्वीकार है। किन्तु एक बात है कि वाद में हमारे विद्वानों में से एक भी इस दुष्ट का मूख नहीं देखेगा क्योंकि इसने भगवान बुद्ध के मस्तक पर पैर रखकर चलने का गुरुतर अपराध किया है। जिसका दण्ड मृत्यु है। यदि इसमें शक्ति है तो अपनी युक्तियों की पुष्टि
और हमारे विद्वानों के तर्को का खण्डन करे। यदि शास्त्रार्थ में वह विजयी होता है तो यह कुशलतापूर्वक अपने घर जा सकता है। पर यदि यह पराजित हो जाता .
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